Faridkot Wala Teeka

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किसी करम कांडी ने प्रशन कीआ कि हे कबीर जी आप बेद और सिंम्रतीआण करके
कथत जो करम हैण तिन को किअुण नहीण मानते? तिस पर कहते हैण॥
बेद की पुत्री सिंम्रिति भाई ॥
सांकल जेवरी लै है आई ॥१॥
हे भाई बेद की पुत्रीआण जो सिंम्रतीआण हैण अरथात जो बेद का आशा ले कर
रिखीओण ने बनाईआण हैण एही जगादी करमसंगल और जो करम किरिआ सो जेवड़ी लैकर
संसार मै आईआण हैण भाव येहि कि सिंम्रतीआण बहुलता करके माइक विखिओण कीआण
प्रतिपादक हैण॥१॥
आपन नगरु आप ते बाधिआ ॥
मोह कै फाधि काल सरु सांधिआ ॥१॥ रहाअु ॥
अपने सरीर रूपी नगर को चैतंन रच के आप ही इस मैण अहं अभिमान कर
बांधा गिआ है मोह रूपी फंध मैण फसे को काल ने इस अूपर (सरु) बां (साधिआ) जोड़िआ
है॥
कटी न कटै तूटि नह जाई ॥
सा सापनि होइ जग कअु खाई ॥२॥
करम रूप जेवड़ी कैसी है गिआन से बिनां काटी होई कटती नहीण और पुरांी हो
कर टूटती नहीण (सा) वहु सरपनीआण हो कर जगत को खा रहीआण हैण भाव एह कि करमोण
के अभिमान रूपी ग़हर से जीव दुखी हो रहे हैण॥
प्रशन: आप सुणी बात कहते होवेणगे॥ अुज़त्र॥
हम देखत जिनि सभु जगु लूटिआ ॥
कहु कबीर मै राम कहि छूटिआ ॥३॥३०॥
जिन करमोण ने हमारे देखते सभ जगत लूटिआ है॥
प्रशन: तुम कैसे बचे? ॥अुज़त्र॥ कबीर जी कहते हैण तिन करमोण से मैण राम नाम
कहिकर छूटिआ हूं॥३॥३०॥
गअुड़ी कबीर जी ॥
एक सरधालू राजा ने कबीर जी को घोड़ा देना चाहा तौ कबीर जी ने कहा हमारे
पास घोड़ा है॥ राजा ने कहा कौन सा घोड़ा है? राजा प्रति मन घोड़े के साज सहित अुज़त्र
कहते हैण॥
देइ मुहार लगामु पहिरावअु ॥
सगल त जीनु गगन दअुरावअु ॥१॥
जो मोह का हार देंा अरथात तिआग देंा है इह विराग रूपी (मुहार) पूजी
दिती है और परमेसर मै लगंा अरथात अती प्रीती का परवाह एह लगाम पहरावता हूं
सरब का जो (तजीन) तिआग कीआ है एही मैण जीन पहरावता हूं॥
प्रशन: मन घोड़े को दौरावते कहां हो? अुज़त्र॥ (गगन) चैतंन अकास मैण दौड़ावता
हूं भाव एह कि ब्रहम का मनन करता हूं॥१॥
प्रशन: आप असवारी कैसे करते हो? अुज़त्र॥
अपनै बीचारि असवारी कीजै ॥
सहज कै पावड़ै पगु धरि लीजै ॥१॥ रहाअु ॥

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