Faridkot Wala Teeka

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हरि चरण रिदै वसाइ तू किलविख होवहि नासु ॥
पंच भू आतमा वसि करहि ता तीरथ करहि निवासु ॥२॥
तूं हरि के चरनोण को ह्रिदे मेण वसाअु तब तेरे पाप नास होवेणगे पंज तज़तोण का सतो
अंस रूप जो मन है जब इसको वज़स करेणगा तब तीरथ मेण निवास करेणगा भाव यह कि फिर
जहां रहेण तहां ही तीरथ है॥२॥मनमुखि इहु मनु मुगधु है सोझी किछू न पाइ ॥
हरि का नामु न बुझई अंति गइआ पछुताइ ॥३॥
मनमुखोण का यहि मनु मूरखु है तिन को कुछ भी सूझ प्रापत नहीण होती कोणकि हरि
का नामु समझते नहीण अंत को जम लोक मेण गए हूए पसचातापु करते हैण॥३॥
इहु मनु कासी सभि तीरथ सिम्रिति सतिगुर दीआ बुझाइ ॥
अठसठि तीरथ तिसु संगि रहहि जिन हरि हिरदै रहिआ समाइ ॥४॥
जिन गुरमुखोण को सतिगुरोण ने आपना अुपदेसु समझाइ दीआ है तिन का एहु
(मनु) अंतसकरणु ही कासी आदि सभ तीरथ और सभ सिंम्रिति रूप है॥ जिस के हिरदे मेण
परमेसर समाइ भाव वस रहा है अठाहठ तीरथ तिन के संग मेण रहिते हैण भाव सभ
तीरथोण का फलु तिन को प्रापत हो गिआ है॥४॥
नानक सतिगुर मिलिऐ हुकमु बुझिआ एकु वसिआ मनि आइ ॥
जो तुधु भावै सभु सचु है सचे रहै समाइ ॥५॥६॥८॥
स्री गुरू जी कहते हैण जिसने सतगुरोण से मिलकर अकाल पुरख का हुकमु समझा है
तिस के ह्रिदे मेण एक परमेसर आइ वसा है॥ पुना॥ ऐसे बेनती करते हैण॥ हे हरी जो
(जो तुधु) तेरे को भावता है सो सभ सचु है हे सज़चे ऐसे जानणे वाले तेरे से अभिंन होरहिते हैण॥५॥६॥
पंना ४९२
गूजरी महला ३ तीजा ॥
पंडित प्रती अुपदेसु है॥
एको नामु निधानु पंडित सुणि सिखु सचु सोई ॥
दूजै भाइ जेता पड़हि पड़त गुणत सदा दुखु होई ॥१॥
हे पंडत जो एक नाम रूपी (निधानु) खजाना है सोई तूं सुण और (सिखु) धार लै॥
दूसरे लग कर जितना कुछु पढेणगा तिस को पढते (गुणत) विचारते तुझे निज़त ही दुखु
होइगा॥१॥
हरि चरणी तूं लागि रहु गुर सबदि सोझी होई ॥
हरि रसु रसना चाखु तूं तां मनु निरमलु होई ॥१॥ रहाअु ॥
हे पंडत तूं हरि के चरनोण मेण लगा रहु तब गुर अुपदेस कर तुझे तज़तु मिथा की
सूझ होइगी॥ हरि के सिमरन रूपी रस को रसनां करके तूं (चाखु) पानकर तां तेरा मनु
सुध होइगा॥१॥
सतिगुर मिलिऐ मनु संतोखीऐ ता फिरि त्रिसना भूख न होइ ॥
नामु निधानु पाइआ पर घरि जाइ न कोइ ॥२॥

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