Faridkot Wala Teeka

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हे करन करावन हारे अंतरजामी हरी तूं अपने दासकी प्रतज़गा को राखता हैण॥
जै जै कारु होतु जग भीतरि सबदु गुरू रसु चाखै ॥१॥
जगत के बीच तिस पुरस का जै जै कार होता है जो गुर (सबदु) अुपदेश कर तेरे
नाम रस को चाखता है॥१॥
प्रभ जी तेरी ओट गुसाई ॥
तू समरथु सरनि का दाता आठ पहर तुम धिआई ॥ रहाअु ॥
हे प्रभू जी गुसाईण मैण तुमारी सरण हूं तूं समरथ और सरण का देंेहारा हैण तां ते
मैण आठोण पहर तुमारे को धावता हूं।
जो जनु भजनु करे प्रभ तेरा तिसै अंदेसा नाही ॥
हे प्रभू जी जो पुरस तेरा भजन करता है तिस को कुछ संसा नहीण रहता है॥
सतिगुर चरन लगे भअु मिटिआ हरि गुन गाए मन माही ॥२॥
हे हरी जो सतिगुरोण के चरणी लागे हैण तिनका जनमादि भ दूर हूआ है बांणी कर
तेरे गुण गाए हैण॥ पुन: तेरे सरूप का मन मैण चिंतन कीआ है॥२॥
सूख सहज आनद घनेरे सतिगुर दीआ दिलासा ॥
जिसको सतिगुर ने (दिलासा) धीरज दीआ है तिस को सभावक सुख अर घने ही
बिवहारक अनंद प्रापति हूए हैण॥
जिंि घरि आए सोभा सेती पूरन होई आसा ॥३॥
वहु अमोलकजनम को जीत कर सोभा सहित सरूप घर मैण इसथित भए हैण और
सरब आसा तिनकी पूरन हूई है॥३॥
पूरा गुरु पूरी मति जा की पूरन प्रभ के कामा ॥
तिसकी मति पूरी है सो गुरू पूरा है तिस समरथ गुरू के कारज भी सभ पूरे हैण॥
गुर चरनी लागि तरिओ भव सागरु जपि नानक हरि हरि नामा
॥४॥२६॥९०॥
ऐसे गुरोण के चरणी लाग कर स्री गुर जी कहते हैण हे हरी संसार समुंद्र से तरे हैण
हर प्रकार तेरे नामोण को जपते हैण॥४॥२६॥९०॥
सोरठि महला ५ ॥
भइओ किरपालु दीन दुख भंजनु आपे सभ बिधि थाटी ॥
दीनोण के दुखोण कौ भंजन करनेहारा वाहगुरू हमारे पर किरपाल भया है अर तिसने
आप ही सभ बिधि (थाटी) बनाई है॥
खिन महि राखि लीओ जनु अपुना गुर पूरै बेड़ी काटी ॥१॥
पूरे गुरोण ने वासना रूप बेड़ी काट दई है॥ अर वाहिगुरू ने खिन विखे आपना
दास जाण कर मैळ राख लीआ है॥१॥
मेरे मन गुर गोविंदु सद धिआईऐ ॥
सगल कलेस मिटहि इसु तन ते मन चिंदिआ फलु पाईऐ ॥ रहाअु ॥
हे मेरे मनगुरोण दारे सदीव गोबिंद जी का धिआवणा करीए सभी कलेस इस
सूखम सरीर से मिट जावेणगे अर मन बांछत फलोण को पाईएगा॥
जीअ जंत जा के सभि कीने प्रभु अूचा अगम अपारा ॥

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