Faridkot Wala Teeka

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नानक राम नामि वडिआई ॥८॥५॥
जो भगती की ओर सीधे हूए हैण तिन्होण ने ही दरगाह मैण सोभा पाई है। स्री गुरू जी
कहते हैण राम के नाम से ही वडिआई मिलती है॥८॥५॥
गअुड़ी महला ३ ॥त्रै गुण वखाणै भरमु न जाइ ॥
जो त्रिगुणी कथा को अुचारते हैण तिनका भ्रमु गुर अुपदेस से बिनां नहीण जाता॥
बंधन न तूटहि मुकति न पाइ ॥
मुकति दाता सतिगुरु जुग माहि ॥१॥
माइक बंधन तूटते नहीण पुना मुकती प्रापत होती नहीण चारोण जुगोण मैण मुकत दाता
तो सतिगुरू है॥१॥
गुरमुखि प्राणी भरमु गवाइ ॥
सहज धुनि अुपजै हरि लिव लाइ ॥१॥ रहाअु ॥
हे प्राणी गुरोण दुआरा भरम को दूर कर अर हरी मेण बिरती लगा तिस कर
(सहज) सांती रूपी (धुनि) बांणी अुपजेगी॥१॥
त्रै गुण कालै की सिरि कारा ॥
पंना २३२
नामु न चेतहि अुपावणहारा ॥
त्रिगुणी जीवोण के सिर पर काल की कार है वा त्रिगुणी जीव अरथात काल के
अधीन हैण किअुणकि अुतपति करणे वाले के नाम को चेतते नहीण॥
मरि जंमहि फिरि वारो वारा ॥२॥
यांते फिर बारंबार जनमते मरते हैण॥२॥
प्रशन:गुरू वाले तो सभी कहावते हैण फिर काल अधीन किअुण रहते हैण? ॥
अुज़तर:
अंधे गुरू ते भरमु न जाई ॥
मूलु छोडि लागे दूजै भाई ॥
अगिआनी गुरू को मिलते हैण तिसते भरम नहीण जाता मूल रूप परमेसर को छोड
कर दैत भाव मैण लाग रहे हैण॥
बिखु का माता बिखु माहि समाई ॥३॥
बिखोण का रस भोग कर जीव (माता) मसत रहता है यां ते मर कर (बिखु) दुख मै
समाई होती है॥३॥
माइआ करि मूलु जंत्र भरमाए ॥
माइआ जो स्रिसटी का मूल है सोई भइआ एक (जंत्र) हिंडोल तिस कर जीव
भरमाए हैण॥
हरि जीअु विसरिआ दूजै भाए ॥
जिसु नदरि करे सो परम गति पाए ॥४॥
दूजे भाइ कर हरि जीअु विसरिआ है॥ और जिस पर हरी क्रिपा द्रिसटी करता
है सो परमगत पावता है॥४॥

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