Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 107 of 441 from Volume 18

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) १२०

१५. ।सतिगुरू जी दी तीर नाल चिज़ठी॥
१४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>१६
दोहरा: जथा बारता परसपर, गिरपति सूबन कीनि।
तथा प्रभू जानति भए, जो निशचै चित चीन१ ॥१॥
ललितपद छंद:कागद को श्री सतिगुरू ले करि
हरफ फारसी केरे।
लिखति भए तिस अूपर आछे
रिपुनि ब्रितंत घनेरे ॥२॥
२दानशवंदन दानश कीनसि
बिज़दा को अज़भासा।
करहि निताप्रति हुइ तिह प्रापति३
सुभट धरहि भरवासा ॥३॥
करामात को कहिर कहै बड
करति न रन के मांही।
इह तौ करम करीम करो कुल*
करता पुरख अलाही३ ॥४॥
भूत भविखत वरतमान महि
विदा जिनहु कमाई।
दुरगम को भी सुगम करति हैण,
दुलभ सुलभ हुइ जाई ॥५॥
लिखो पज़त्र सो करो इकज़त्रै
धागे सो सर बंधा।
बहुरो धनुख कठोर लियो कर
बान पनच महि संधा ॥६॥
तानि कान लगि बल ते छोडो
चलो शूंक असमाना।
दारुन शबद चांप ते होवा


१जो निशचै कर चित विच देखी सी कि इह करामात है।
२(तुसां) दानिआण ने दानाई लाई है (कि इह करामात है पर इह तां) विदा दा अभिआस है
जो नित करेगा अुस ळ प्रापत हो जाएगा।*पा:-कुछ।
३पर इह तां कुज़ल दे करता पुरख इलाही ने करम (=बखशिश) कीता है (असां पर)। ।फा:,
करम=बखशिश। करीम=बखशिंद। कुल=सारे (जगत दे॥।

Displaying Page 107 of 441 from Volume 18