Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ४५७

६२. ।सतिगुरू जी दी दिज़लीओण चिठी॥
६१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>६३
दोहरा: लोह पिंजरे महि गुरू, नमो करी सिख देखि।
मुचो बिलोचन जल तबै, संकट रिदै बिशे ॥१॥
चौपई: हाथ जोरि सभि अरग़ गुग़ारी।
आइसु मानि कुटंब तुमारी।
तजि लखनौर अनदपुरि गए।
ब्रिध माता को संकट भए ॥२॥
बारि बारि ले सास बडेरे।
बैठति अुठति द्रिगन जल गेरे।
तिम श्री गुजरी बहु दुख पावै।
तुमरी दिशि नित प्रति चित लावै ॥३॥
-कहां होइ है, लखी न जाइ-।
निस दिन चिंता करति बिताइ।
साहिबग़ादा दे अहिलाद१।
धीर धरावहि करि तुम याद ॥४॥
कहि महिमा बिधि अनिक तुमारी।-कारन करन शकति धरि भारी।
चहैण सु करैण न लगे अवारी।
आपे रची बारता सारी ॥५॥
तअू अधिक बिरलापहि माई२।
सास नुखा है कै इक थाईण।
तिन के धीर धरावनि कारन।
तुमरे सुत मुहि कीनि हकारनि ॥६॥
दादी अरु निज मात सुनाइ।
कहो कि -लीजहि सुधि मगवाइ।
जथा कहैण पित तथा सुनीजहि३।
धरहु प्रतीत न चिंता कीजहि ॥७॥
जो क्रित आप करनि को गए।


१अनद दिंदे हन। भाव हौसला दिंदे हन।
२माईआण विरलाप करदीआण हन।
३सुणो।

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