Sri Guru Granth Darpan

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जिथे माइआ-रहित, आकार-रहित ते वाशना-रहित प्रभू ही सी, उथे माण अहंकार किस होणा
सी?

जिथे केवल जगत दे मालक प्रभू दी ही हसती सी, ओथे दॱसो, छल ते ऐब किस लॱग सकदे सन?

जदों जोति-रूप प्रभू आपणी ही जोति विच लीन सी, तदों किस (माइआ दी) भुॱख हो सकदी सी ते
कौण रॱजिआ होइआ सी?

करतार आप ही सभ कुझ करन वाला ते जीवां तों कराउण वाला है। हे नानक! करतार दा
अंदाज़ा नहीं पाइआ जा सकदा ।४।

जब अपनी सोभा आपन संगि बनाई ॥ तब कवन माइ बाप मित्र सुत भाई ॥ जह सरब कला
आपहि परबीन ॥ तह बेद कतेब कहा कोऊ चीनੴ ॥ जब आपन आपु आपि उरिधारै ॥ तउ सगन
अपसगन कहा बीचारै ॥ जह आपन ऊच आपन आपि नेरा ॥ तह कउनु ठाकुरु कउनु कहीऐ चेरा
॥ बिसमन बिसम रहे बिसमाद ॥ नानक अपनी गति जानहु आपि ॥५॥ {पंना २९१}

पद अरथ :सुतपुत्र । भाईभरा । कलाताकत । परबीनसिआणा । चीनੴजाणदा,
पछाणदा । आपन आपुआपणे आप । उरिधारैहिरदे विच टिकाउंदा है । ठाकुरुमालक
। चेरासेवक । कहा बीचारैकिथे कोई विचारदा है? बिसमन बिसमअचरज तों अचरज ।

जदों प्रभू ने आपणी सोभा आपणे ही नाल बणाई सी (भाव, जदों कोई होर उस दी सोभा करन वाला
नहीं सी) तदों कौण मां, पिउ, मित्र, पुत्र जां भरा सी?

जदों अकाल पुरख आप ही सारीआं ताकतां विच सिआणा सी, तदों किथे कोई वेद (हिंदू धरम
पुसतक) ते कतेबां (मुसलमानां दे धरम पुसतक) विचारदा सी?

जदों प्रभू आपणे आप आप ही आपणे आप विच टिकाई बैठा सी, तदों चंगे मंदे सगन कौण
सोचदा सी? दॱसो मालक कौण सी ते सेवक कौण सी?

हे नानक! (प्रभू अॱगे अरदास कर ते आखहे प्रभू!) तूं आपणी गति आप ही जाणदा हैं, जीवतेरी गति भालदे हैरान ते अचरज हो रहे हन ।५।

जह अछल अछेद अभेद समाइआ ॥ ऊहा किसहि बिआपत माइआ ॥ आपस कउ आपहि आदेसु
॥ तिहु गुण का नाही परवेसु ॥ जह एकहि एक एक भगवंता ॥ तह कउनु अचिंतु किसु लागै चिंता
॥ जह आपन आपु आपि पतीआरा ॥ तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा ॥ बहु बेअंत ऊच ते ऊचा
॥ नानक आपस कउ आपहि पहूचा ॥६॥ {पंना २९१}

पद अरथ :अछलजो छलिआ नाह जा सके, जिस धोखा नाह दिॱता जा सके । अछेदजो
छेदिआ नाह जाह सके, नास-रहित । अभेदजिस दा भेत न पाइआ जा सके । ऊहाओथे ।
किसहिकिस ? आपस कउआपणे आप । आपहिआप ही । आदेसुनमसकार, प्रणाम
। परवेसुदख़ल, प्रभाव । अचिंतुबे-फ़िकर । आपन आपुआपणे आप । पतीआरा
पतिआउण वाला । पहूचापहुंचिआ होइआ है ।

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