Sri Guru Granth Darpan

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सकउ जैसे जल बिनु मीनु मरि जाई ॥१॥ रहाउ ॥ कब कोऊ मेलै पंच सत गाइण कब को राग
धुनि उठावै ॥ मेलत चुनत खिनु पलु चसा लागै तब लगु मेरा मनु राम गुन गावै ॥२॥ कब को
नाचै पाव पसारै कब को हाथपसारै ॥ हाथ पाव पसारत बिलमु तिलु लागै तब लगु मेरा मनु राम
समੴारै ॥३॥ कब कोऊ लोगन कउ पतीआवै लोकि पतीणै ना पति होइ ॥ जन नानक हरि हिरदै सद
धिआवहु ता जै जै करे सभु कोइ ॥४॥१०॥६२॥ {पंना ३६८}

पद अरथ :कबकदों, किउं? कोकोई । भालैलॱभे । आवत जातआउंदिआं जांदिआं ।
बारचिर । खिनुघड़ी पल । हउमैं । तब लगुउतना चिर । समारउमैं संभालदा हां,
मैं याद करदा हां ।१।

मनिमन विच । मीनुमॱछ, मॱछी ।१।रहाउ।

पंचपंज तारां । सतसॱत सुरां । चसाथोड़ा कु समा ।२।

पाव{लफ़ज़ पाउ तों बहु-वचन} पैर । पसारैखिलारे । बिलमुदेर । समੴारैसंभालदा है
।१।

कउ । पतीआवैयकीन दिवाए । लोकि पतीणैजे जगत पतीज भी जाए । पतिइॱज़त ।
जै जैआदर-सतकार । सभु कोइहरेक जीव ।४।

अरथ :किउं कोई ताल देण वासते घुंघरू लॱभदा फिरे? (भाव, मै घुंघरूआं दी लोड़ नहीं),
किउं कोई रबाब (आदिक साज) वजांदा फिरे? (इह घुंघरू रबाब आदिक लिआउण वासते)
आउंदिआं जांदिआं कुझ न कुझ समा लॱगदा है । पर मैं तां उतना समा भी परमातमा दा नाम ही
याद करांगा ।१।

(हे भाई!) मेरे मन विच परमातमा दी भगती इहो जिही बणी पई है कि मैं परमातमा दी याद
तों बिना इक घड़ी पल भी रहि नहीं सकदा (मै याद तों बिना आतमकमौत जापण लॱग पैंदी है)
जिवें पाणी तों विछुड़ के मॱछी मर जांदी है ।१।रहाउ।

(हे भाई!) गाण वासते किउं कोई पंज तारां ते सॱत सुरां मिलांदा फिरे? किउं कोई राग दी सुर
चुॱकदा फिरे? इह तारां सुरां मिलांदिआं ते सुर चुॱकदिआं कुझ न कुझ समा ज़रूर लॱगदा है । मेरा
मन तां उतना समा भी परमातमा दे गुण गांदा रहेगा ।२।

(हे भाई!) किउं कोई नॱचदा फिरे? (नॱचण वासते) किउं कोई पैर खिलारे? किउं कोई हॱथ
खिलारे? इहनां हॱथां पैरां खिलारदिआं भी थोड़ा-बहुत समा लॱगदा ही है । मेरा मन तां उतना
समां भी परमातमा हिरदे विच वसांदा रहेगा ।३।

(हे भाई! आपणे आप भगत ज़ाहर करन वासते) किउं कोई लोकां यकीन दिवांदा फिरे? जे
लोकां दी तसॱली हो भी जावे तां भी (प्रभू-दर ते) इॱज़त नहीं मिलेगी । हे दास नानक! (आखहे
भाई!) सदा आपणे हिरदे विच परमातमा सिमरदे रहो, इस तर्हां हरेक जीव आदर-सतकार
करदा है ।४।१०।६२।

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