Sri Guru Granth Darpan

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इह इतराज़ कोई वज़न नहीं रॱखदा

इतराज़ करन वाले सॱजण शाइद इह इतराज़ भी कर देण कि जे नामदेव उस मूरती दा पुजारी
नहीं सी, तां उह उस इॱक दिन भी उॱथे किउं गिआ सी । पर इह इतराज़ कोई वज़न नहीं
रॱखदा । मुसलमान ईसाई अते होर कई मतां दे लोक स्री हरिमंदर साहिब अंम्रितसर आइआ
करदे हन, पर इस दा इह भाव नहीं कि उह गुरू नानक साहिब दे सिॱख दी हैसीअत विच
आउंदे हन । गुरदुआरा लहिर तों पहिलां जदों स्री हरिमंदर साहिब दा परबंध सनातनी
सिॱखां दे हॱथ विच सी तां उॱची जात वाले हिंदूआं ते सिॱखां तों बिना किसे होर हर वेले अंदर
जाण दी आगिआ नहीं सी, इहनां लई ख़ास समां मुकॱरर सी ते ख़ास पासा नियत सी । उहनीं
दिनीं जिहड़ा कोई अजिहा वरजित बंदा उस सुॱच दे नेम दा उलंघण करदा होवेगा, उस
ज़रूर धॱके पैंदे होणगे । इथों तक कि अखौती मज़हबी सिंघां धॱके मारे गए; इहनां वधीकीआं
करके ही तां इहनां लोकां पासों परबंध खोह लैण लई गुरदुआरा लहिर चॱली सी ।

हिंदू मंदरां विच कई सिॱख भी सिरफ़ वेखण दी ख़ातर ही चले जांदे हन, उहनां बारे इहनहीं
किहा जा सकदा कि उह उॱथे शरधा नाल पूजा करन दी ख़ातर जांदे हन । इसे तर्हां ही भगत
नामदेव भी कदे इॱक वारी बीठुल-मूरती दे मंदर चला गिआ होवेगा ।

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जैसे तउ गोबंस तिण पाइ, दुहै, गोरसु दै, गोरसु औटाइ, दधि माखनु प्रगास है ॥ ऊख महि
पयूखु, तनु खंड खंड कै पिराइ, रस कै औटाइ, खंडु मिसरी मिठास है ॥ चंदन सुगंधि सनबंध कै
बनासपती, ढाक औ पलास जैसे चंदन सुबासु है ॥ साधु संगि मिलत, संसारी निरंकारी होत,
गुरमति परउपकार कै निवासु है ॥१२९॥ {कबिॱत भाई गुरदास जी

पद अरथ :गोबंसगाईआं दी कुल, गाईआं दा वॱग । तिणघाह । दुहै(जदों) चोईदा है
। गोरसुदुॱध । दैदेंदा है । औटाइकाड़्ह के । दधिदहीं । प्रगास हैनिकलदा है ।

ऊखगंना । पयूखुरस, रहु । तनु(गंने दा) सरीर । खंड खंड कैटोटे टोटे कर के {कै
करि, कर के} पिराइपीड़ के । रस कै औटाइ(गंने दी) रहु काड़्हिआं ।

सनबंध कैमेल नाल । चंदन सु बासुचंदन दी ख़ुशबू ।

संसारीसंसार विच खचित मनुॱख । निरंकारीपरमातमा नाल पिआर करन वाला । गुरमति
गुरू दी सिॱखिआ लै के । परउपकार कैदूजिआं दी भलाई करन विच । निवासु(उस दे मन
दा) टिकाणा ।

ठाकुर दुॱध पिलाणा
भैरउ नामदेउ जी ॥ दूुधु कटोरै गडवैपानी ॥ कपल गाइ नामै दुहि आनी ॥१॥ दूधु पीउ गोबिंदे
राए ॥ दूधु पीउ मेरो मनु पतीआइ ॥ नाही त घर को बापु रिसाइ ॥१॥रहाउ॥ सोुइन कटोरी
अंम्रित भरी ॥ लै नामै हरि आगै धरी ॥२॥ एकु भगतु मेरे हिरदै बसै ॥ नामे देखि नराइनु हसै
॥३॥ दूधु पीआइ भगतु घरि गइआ ॥ नामे हरि का दरसनु भइआ ॥४॥३॥ {पंना ११६३}

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