Sri Guru Granth Darpan

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नामदेव जी छीपा ज़ाती तों आज़ाद ना हो सके ।...ज़ात-पात दे अती पाबंद सन । उस वेले ज़ात-
पात दा चरचा भी बड़ा भारी सी । शूदर संगिआ दी बिआधी करके ब्राहमणां ने मंदरां विच जाण
दी आगिआ नहीं दिॱती सी अते आप ढेढ भी कहिंदे सन....... ।

गुरमति दा सिॱधांत बहुत उॱचा ते सुॱचा है । इस अवसथा भगत नामदेव नहीं पहुंच सके ।
जनम थीं जात मंनणी अगिआन है ।

जरवाणा कमज़ोर मारदा भी है ते रोण भी नहीं देंदा । नामदेव जी आपणे कोड़ां भरावां उॱते
ब्राहमणां वलों हो रही अॱत दे विरुॱध पुकार करदे हन । इस पुकार दा अरथ सिरफ़ इह कॱढिआ
गिआ है कि जनम थीं जाती मंनणी अगिआन है ।

पर सॱजण जी! गुरू पातिशाह दी आपणी बाणी विचों वंनगी वजों हेठ लिखे प्रमाण रता धिआन नाल
पड़्हने :

(१) नामा जैदेउ कंबीर तिलोचनु, अउजाति रविदास चमिआरु चमईआ ॥
. . जो जो मिलै साधू जन संगति, धनु धंना जटु, सैणु मिलिआ हरि दईआ ॥७॥४॥ {बिलावलु म:
४, पंना ८३५

(२) कलजुगि नामु प्रधानु पदारथु, भगत जना उधरे ॥
. . नामाजैदेउ कबीरु तिलोचनु, सभि दोख गए चमरे ॥२॥१॥
. . {चमरेचमार रविदास दे} {मारू म: ४, पंना ९९५

(३) साध संगि नानक बुधि पाई, हरि कीरतनु आधारो ॥
. . नामदेउ तिलोचनु कबीर दासरो, मुकति भइओ चमिआरो ॥२॥१॥१०॥ {गूजरी म: ५, पंना
४९८

(४) रविदासु चमारु उसतति करे, हरि कीरति निमख इक गाइ ॥
. . पतति जाति उतमु भइआ चारि वरन पए पगि आइ ॥२॥
. . नामदेअ प्रीति लगी हरि सेती, लोकु छीपा कहै बुलाइ ॥
. . खती ब्राहमण पिठि दे छोडे, हरि नामदेउ लीआ मुखि लाइ ॥३॥१॥८॥ {सूही म: ४, पंना
७३३

(५) जैदेव तिआगिओ अहंमेव ॥ नाई उधरिओ सैनु सेव ॥६॥१॥ {बसंतु म: ५, पंना ११९२

सतिगुरू जी तां इहनां भगतां दी वडिआई कर रहे हन । पर साडा सॱजण कहिंदा है कि इह लोक
गुरमति दे सिॱधांत नहीं पहुंच सके ।

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
भगत कबीर जी नाल

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