Sri Guru Granth Darpan

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दिआं (ताकि)सुखैन ही प्रभू दे गुण गा सकां; (किउंकि) हे नानक! संत मिल पए तां रॱब मिल
पैंदा है ।१।

किआ भवीऐ, सचि सूचा होइ ॥
साच सबदु बिनु, मुकति न होइ ॥१॥रहाउ॥ {पंना ९३८}

पद अरथ :किआ भवीऐभौण दा कीह लाभ? देस देसांतरां अते तीरथां ते भौण दा कीह लाभ?

सचिसॱच विच, सदा काइम रहिण वाले प्रभू विच (जुड़िआं) । सूचापवित ।

रहाउठहर जाओ, (भाव), इस सारी लंमी बाणी दा मुॱख भाव इहनां दो तुकां विच है ।

नोट :सुखमनी दीआं २४ अशटपदीआं हन, पर सारी लंमी बाणी दा मुॱखभाव केवल
हेठ-लिखीआं दो तुकां विच है जिन्हां दे अंत विच लफ़ज़ रहाउ दरज है :

सुखमनी सुख अंम्रित प्रभ नामु ॥
भगत जना कै मनि बिस्राम ॥रहाउ॥

इसे तर्हां ओअंकारु इक लंमी बाणी है, इस दा मुख भाव रहाउ दीआं तुकां विच इउं
है :

सुणि पाडे, किआ लिखहु जंजाला ॥
लिखु राम नामु, गुरमुखि गोपाला ॥१॥रहाउ॥

अरथ :(हे चरपट! देस-देसांतरां अते तीरथां ते) भौण दा कीह लाभ? सदा काइम रहिण वाले
प्रभू विच जुड़िआं ही पवित होईदा है; (सतिगुरू दे) सॱचे शबद तों बिना (दुनीआ सागर दुतर
तों) ख़लासी नहीं हुंदी ।१।रहाउ।

कवन तुम्हे किआ नाउ तुमारा, कउनु मारगु, कउनु सुआओ ॥ साचु कहउ, अरदासि हमारी, हउसंत जना बलि जाओ ॥ कह बैसहु, कह रहीऐ बाले, कह आवहु, कह जाहो ॥ नानकु बोलै, सुणि
बैरागी, किआ तुमारा राहो ॥२॥ {पंना ९३८}

पद अरथ :तुम्हेअॱखर म दे नाल अॱधा ह है । मारगुरसता, पंथ, मत । सुआओ
मनोरथ, प्रयोजन । कहउमैं कहिंदा हां, मैं जपदा हां । हउमैं । कहकिथे? किस दे
आसरे? बैसहु(तुसी) बैठदे हो, शांत-चिॱत हुंदे हो । बालेहे बालक! कहकिथे? नानकु
बोलैनानक आखदा है (कि जोगी ने पुछिआ) । बैरागीहे बैरागी! हे वैरागवान! हे संत जी!
साचुसदा काइम रहिण वाला प्रभू । राहोराहु, मत, मारग ।

अरथ :(चरपट जोगी ने पुॱछिआ) तुसी कौण हो? तुहाडा कीह नाम है? तुहाडा कीह मत है?
(उस मत दा) कीह मनोरथ है?

(गुरू नानक देव जी दा उॱतर) मैं सदा काइम रहिण वाले प्रभू जपदा हां, साडी (प्रभू अगे
ही सदा) अरदासि है ते मैं संत जनां तों सदके जांदा हां (बॱस! इह मेरा मत है) ।

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