Sri Nanak Prakash
१३७
अधाय दूजा
२. मंगल पज़त्री लिआअुणी, बाले दा गुरू अंगद जी ळ मिलंा॥
सैया: बलवंड बडे भुजदंड प्रचंड,
अखंड अदंड करे खल खंडा
रनमंड अुमंड घमंडित चंडि,
अखंडल के अरि कीन बिहंडा
कर हेरि कुवंडह तुंडह पंडु,
भगे जस मंडन का ब्रहमंडा
सिधिदा निधिदा रिधिदा बुधिदा
जुध मज़ध सहाइसदा भवमंडा ॥१॥
बलवंड=बलवंत=बलवान
भुजदंड=डंडे वरगीआण मग़बूत बाहां (अ) बाहां दे डौले
प्रचंड=तेज वाले अखंड=अटुज़ट, जो भज़ज न सज़कं
अदंड=अ =दंड=जिन्हां ळ दंड ना दिज़ता जा सके,निरभै
खल=मूरख खंडा=खंड दिज़ते, टोटे कर सिज़टे, नाश कीते
रणमंड=रण मंड=मैदान जंग सजे होए विच रण तज़ते या रण मज़ते विच
अुमंड=जोश नाल
घमंडित=घमंड विच आ के, भाव रण विच वैरी ळ वंगारके (मारना) वंगारके
चंड=इज़क दैणत जिसळ देवी ने मारिआ सी (अ) चंडि, चंडी=चंडिका देवी
राखशां ळ मारन वाला देवी दा रूप शकती
अखंडल=आखंडल=इंद्र* अरि=वैरी
बिहंडा=संस: विघटन, विहननण प्राक्रित, बिहंडन॥=टोटे टोटे कर सिटंे,
मार देणा, प्राजै करना
कर=हज़थ हेरि=देखके
कुवंडह=धनुखसंस: कोदंड, हिंदी, कुबंड॥
तुंडह=तुंड-मूंह
पंडु-पांडू रंग दे, पीले, पिज़ले मूंह पीला होणा, भै खांा है
मंडनभा=असथापन होइआ, फैलिआ होइआ
ब्रहमंडा=जगत विच
सिधि दा निधि दा रिधि दा बुधि दा=सिधि, निधि, रिधी ते बुज़धी दा दाता
निधीआण ते सिधीआण लई वेखो पहिले अधाय दे १७वेण छंद दे पदारथ
*अखंडल=अटुज़ट पर एथे मराद आखंडल तोण है