Sri Nanak Prakash

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६९. सतिगुर मंगल प्रहलाद प्रसंग॥

{दस शुभ गुण} ॥५०॥दोहरा: सतिगुर मम बेरी कटहु, निज बेरी पर चारि
इस बेरी है भव सुफल, बिन बेरी करि पार ॥१॥
बेरी=बेड़ी, पैराण दीआण कड़ीआण जो कैदीआण ळ पाअुणदे हन हज़थां दी हथकड़ी
ते पैराण दी बेड़ी कहिलाअुणदी है, भाव कैद
बेरी=बेड़ी, नाअुका बेड़ा तोण बेड़ी भाव छोटी बेड़ी
बेरी=वारी, हिंदी विच बार ळ बेरी बी लिख बोल लैणदे हन
बेरी=ढिज़ल, देरी, बेर ळ हिंदी विच बेरी बी लिख बोल लैणदे हन
अरथ: (हे) सतिगुरू जी! मेरी कैद कज़ट दिओ (अते) आपणी नौका पर चाड़्हके बिना
देरी (दे संसार नदी तोण) पार कर दिओ (जो) इस वारी दा जनम सफला हो
जावे
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री गुरु अंगद जी इह कथा
जथा प्रहिलाद भनी सुनु तथा
हिरनकशप सुनि बिशनु अुपासन'१
भयो क्रोध मैण मनहु हुतासन२ ॥२॥
मारन चहिस मंदमति मानी
मुख ते बोलो बिखवत३ बानी
-रे सठ बालिक! मो बिन ईसा४
कहो कहां? नतु५ काटोण सीसा६- ॥३॥
अस कहि मानहि ते सु महाना
खैणचि खड़ग कर महिण चमकाना
-को रखवारो? देहु बताई
अब जम धामहि७ देअुण पठाई- ॥४॥सुनि करि मैण तब गिरा अलाई
-परिपूरन है सभिनी थाईण


१बंदगी
२अगनी
३ग़हिर वरगी
४ईशर
५नहीण तां
६(तेरा) सिर
७धरमराज दे घर

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