Sri Nanak Prakash

Displaying Page 188 of 1267 from Volume 1

२१७

६. गोपाल पांधे प्रति अुपदेश॥

{पांधे पास जाण दा द्रिश} ॥५॥
{गोपाल पांधे प्रति अुपदेश} ॥१२..॥
सैया: सुंदर श्री अरबिंद बनी, गुरु कीरति आनद ब्रिंद जई
मंजुल रूप मरालनि अुज़जल, सारद शोभति नित नई
जे गुन ग्राहि गुनी अलि कंदल,प्रीति सुगंधि की चीत भई
जाचति हौण कर जोरि निहोरति, मानस मेरे मोण होण थिरई ॥१॥
अरबिंद=कमल
बनी=फब रही है, बन बन पै रही है, (अ) बनी=बगीची, बाटिका अरबिंद
बनी=कमलां दी बगीची
आनद ब्रिंद जई=बिंद आनद जई-बहुते आनद अुतपत करन वाली है
भाव-जिस ळ देखिआण दिल खुश होवे
मंजुल=मन ळ भाअुण वाला, पसंदीदा, अुज़जल
मराल=इक प्रकार दी बज़त, (अ) हंस
मराल दा बहु वचन है मरालन पर मरालनि दे नने ळ सिआरी होण करके
पद मरालनि दा अरथ हंसनीआण बी करदे हन
सारद=शारदा, सरसती, विदा दी देवी, अुस ळ कवीआण ने अुज़जल ते शोभा
वाली अति सुंदर मंनिआ है
अलि=भौरे
कंदल=कंदल दा अरथ-समूह करदे हन परंतू कंदल नाम है सोने दा, नवेण
फुज़टे शगूफे दा, जिस ळ फुल पैं इस तोण कंदल दी मुराद बी पिज़छे कही
अुज़जलता, सुंदरता, शोभा वाणू खेड़े या बिकास तोण है, ते विशेशं है गुणी जनां दा
जिन्हां दा दिल या मसतक खिड़े होए हन जीकूं भौरा फुज़लां ते खुश ते खिड़े दिल
गुंजार करदा फिरदा है
करजोरि=हज़थ जोड़ के निहोरति=बेनती, तरला, मिंनत
मानस=मन मोण=विज़च
थिरई=थिर हो, टिको, इसथित हो
अरथ: (श्री)गुरू जी दी श्री कीरती बहुते आनद ळ अुपजाअुण वाली अपणी
सुंदरता (विज़च) कमलां (वाू) फब रही है
(हां अुह अपणी) मंजल-रूपता (विज़च) हंसां (वाणू) अुज़जल (अते आपणी शोभा विच)
शारदा (वाणू) नित नवीण (तोण नवीण) शोभा दे रही है
(इह सुंदरता, अुज़जलता, शोभा देख के) जिहड़े भौरिआण (समान) गुणां ळ ग्रहण
करन वाले समूह गुणी जन (हन, अुन्हां दे) चिज़त विच (सदा) सुगंधी लैं
दी प्रीत (अुदित) हो रही है

Displaying Page 188 of 1267 from Volume 1