Sri Nanak Prakash
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२१. शारदा मंगल दिज़ली विखे हाथी जिवालंा ते मरदाने दी पूजा
करवाअुणी॥
२०ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२२
{गुरू जी दिज़ली विज़च} ॥२..॥
{हाथी जिवाया} ॥२२..॥
{पीर नग़ामुदीन} ॥३०॥
{मरदाने दी पूजा करवाई} ॥५५..॥
{अजीब बेस} ॥७६.. ॥॥ ॥२२॥
भुयंग प्रयात छंद: नमो चंडिका मंडिका सरब लोका
प्रसीदे सदा दास देती अशोका
हते दैणत ब्रिंदं रखो बज़ज्रपानी
करो ग्रंथ पूरं नमो बाकबानी ॥१॥
मंडिका=देखो पूरबारध अधाय १ अंक २
प्रसीदे=पसीजके, क्रिपाल होके, त्रज़ठके
अशोका=अ शोक=शोक रहतता,प्रसंनता
अरथ: सारे लोकाण ळ सवारण वाली, हे तेज सरूप! (तैळ) नमसकार होवे, (तूं जद)
त्रज़ठेण शोक रहित हो जाण दी दात सदा दास ळ देणदी हैण, (तूं) इंद्र ळ
(अुस दे शत्र) दैणत मारके बचा लिआ, (हे सरसती मेरे विघनां ळ हतके,
मेरा बी) ग्रंथ संपूरन करो, मैण तैळ नमसकार करदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा महानी
तहिण ते गमन कीन गुनखानी
दिज़ली नगर बिसाल बसेरा {गुरू जी दिज़ली विज़च}
अुपबन१ बिखै आनि किय डेरा ॥२॥
गावन लगा शबद मरदाना
सुनहिण प्रेम महिण मगन महाना
रुचिर राग करि कै युत प्रीते
तूशन बहुर महूरत बीते ॥३॥
पातिशाहि को कुंचर२ भारी
म्रितक हुतो तिह बा मझारी
रोइ महावत अूच पुकारति
हेतु जीवका दुख महिण आरत३ ॥४॥
१बा
२हाथी
३दुखी