Sri Nanak Prakash

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२३. सतिगुर मंगल सतिज़घरा विखे दुखी शाह दा अुधार॥
२२ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२४
{सतिज़घरा दा दुखी सेठ} ॥२..॥
{करम फिलासफी बाबत सुंदर वीचार} ॥२८-३७॥
{इंद्र दी कथा} ॥४०-५२॥
{परसराम दी कथा} ॥५३-६७॥
{अज, राम, रावं-संखेप} ॥६८-७२॥
दोहरा: सुख सागर नागर गुरू, जगत अुजागर रूप
बंदोण पद अरबिंद को, अुचरोण कथा अनूप ॥१॥
नगर=जो नगर विच वज़सदा होवे सो नागर (अ) नगर दे वज़सं वाले पिंडां
दे वज़सं वालिआण तोण वधेरे सज़भ हुंदे हन, इस लई नागर दा अरथ हो
गिआ है चतुर, प्रबीन, गुणसंपंन, सभ, सुसिज़खत (ॲ) शहिराण दे रहिं
वाले मुशज़कत दे कंम ना करन करके सुहल ते कुछ सुहणे हो जाणदे हन इस
करके नागर दा अरथसुहणा बी है
अरथ: गुरू सुखां दा समुंदर है (ते हर गुण विच) निपुन है, (अुस दा) सरूप
जगत प्रसिज़ध है (अुन्हां दे) चरनां कमलां ळ नमसकार करके (अगोण होर)
अनूपम कथा अुचारदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा सुहानी
गमन कीन आगे गुनखानी
हुतो सतिज़घरा* एक सथाना {सतिज़घरा दा दुखी सेठ}
तहां पहूचे क्रिपा निधाना ॥२॥
गमने बहुर बजार मझारा
बैठि गए इक हाट अुदारा
हुतो धनाढ शाह इक भारी
कामे जिह के बहुत अगारी ॥३॥
जग के धंध अधिक सो करिई
रिदे नाम हरि कदे न धरिई
करति बनज सभि दिवस बितावति
पची भयो१ कबहि न बिसरावति२ ॥४॥
दोहरा: घटी दोइ दिन जब रहा, मरदाने द्रिग लाइ१


*तवा.खा. ने इस पिंड दा नाअुण नुशहिरा दिज़ता है (देखो सफा ४७८) सतिज़घरा मिंटगुमरी दे
ग़िले विच है ते सतिगुरु जी दी यादगार विच अुथे गुरदारा है, ते इह कथा बी ओथे प्रसिज़ध है
१(विहार विच) खचत होया
२भुज़लदा नहीण(विहाराण ळ)

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