Sri Nanak Prakash

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२७. निम्रता निवास एमनावाद बाबर दा हज़ला॥
२६ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ२८
{एमनावाद प्रसंग} ॥२..॥
{एमनावाद दे हंकारी पठान} ॥५॥
{भविज़खत बचन} ॥२१..॥
{लालो ळ शहिर छज़डं वासते हुकम} ॥४९..॥
{बाबर दा हज़ला} ॥६०..॥
दोहरा: गिर हंकार ते तर अुतरि, सरब रेन घर छाइण
अुशन सीतादि बिकार जे, हे मन तब सुख पाइण ॥१॥
तर=तरे, तले, हेठ
सरब रेन=सारिआण दी रेण हो जाणा, निम्रता
घर छाइण=घर पा लवेण
अुशन सीतादि=गरमी सरदी आदिक, मुराद है दंदां तोण
अरथ: हे मन! हंकार (रूपी) पहाड़ तोण हेठां अुतर के जे (तूं) सारिआण (दे चरणां
दी) रेण (हो जाण रूपी) घर छां लवेण, तद गरमी सरदी (रज, तम) आदि
(रूपी) विकाराण दे छुट जाण (नाल तूं) सुख पा लवेण
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनीए इतिहासा
वहिर नगर बैठे सुखरासा{एमनावाद प्रसंग}
हुतो पठान तहां को राजा
घर घर बहुर बजावहि बाजा ॥२॥
अधिक बाह तिस दिन पुरि मांही
करति कुलाहल१ अुर हरखाहीण
गावहिण नाचहिण माचहिण रंगा
अति अुतसव महिण रहे अुमंगा ॥३॥
भूखन बसत्र नवीन पहिरि कै
बने छैल बहु गरब गहिर२ कै
अवलोकति हैण रंग तमाशे
अनिक प्रकारन ठानहिण हासे ॥४॥
गरीअन३ बिखै कुदाइ तुरंगा {एमनावाद दे हंकारी पठान}
बैठे मूछ बाम४ सरबंगा


१खुशीआण
२डूंघे हंकार करके
३गलीआण
४मुज़छां कुंढीआण करके

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