Sri Nanak Prakash

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२४. गुरबाणी मंगल सुलतानपुर आअुणा॥

{गुरबाणी मंगल} ॥१॥
{हुमा पंछी द्रिशटांत} ॥९..॥
{कालू जी ने धन दी महिमा दज़संी} ॥२०..॥
सुधा की तरंगनी सी रोग भ्रम भंगनी है
कबिज़त:
महां सेत रंगनी महान मन मानी है
किधौण यहि हंसनी सी मानस वितंसनी है
गुनीन प्रसंसनी सरब जगजानी है
किधौण चंद चांदनी सी मोह घाम मंदनी है
रिदे की अनदनी सदीव सुखदानी है
प्रेम पटरानी सानी, गान की जननि जानी
गुनी भनी बानी, तां की गुरू गुरबानी है ॥१॥
सुधा=अंम्रित तरंगनी=नदीसंस: तरंंी॥
सी=वाण भंगनी=भंनं वाली सेत=चिज़टे
रंगनी=रंग वाली
मनमानी=मन मंनी, मन ळ रुचि आअुण वाली, पारी
मानस=मान सरवर इस पद दे होर अरथ इह हन:-मन, संकलप, विकलप,
मनुख, आदमी, इक नाग दा नाम, सालमल दीप दे वरहे दा नाम
वितंसनी=भूखं रूप, शोभा देण वाली संस: वतणस, अवितणस धातू,
तसि=फबाअुणा॥ इस अवतंस पद दे होर अरथ एह हन:-सिर दा गहिंा, कोई
गहिंा, कंनां दा गहिंा, मुरकी, करन फुल, माला, मुकट लाड़ा, भतीजा
प्रसंसनी=सलाही गई रुंीन प्रसंसनी=गुणी जिन्हां तोण सलाही गई संस:
प्रसंसा=गुणां दा कथन, शलाघा॥
सुखदानी सदैवी सुख देण वाली, अटज़ल अविनाश सुख दी दाती जननि=माता
अरथ: अंम्रत दी नदी वाणगूं भरम रूपी रोग ळ दूर करन वाली है, रंग इसदा
डाढा चिज़टा ते मन ळ डाढी पिआरी लगण वाली है या इह मान सरोवर ळ
शोभा देण वाली हंसनी है,गुणीआण ने (इसदी) प्रसंसा कीती है, ते सारे
जहान ने (एह) जाण लई है या इह मोह रूपी तपश ळ मंद करन वाली
चंद दी चानंी है, हिरदे ळ अनद देण वाली सदैवी सुख दी दाती है प्रेम
दी सुघड़ पटराणी है ते गिआन दी माता जाणी गई है, (जे कोई) गणीआण
दी अुचारी बाणी है बी (तां) अुन्हां दी वी गुरू गुरबाणी है
भाव: कवि जी दसां सतिगुराण दे मंगल कथन करदे होए हुण गुरबाणी ते आए
हन अुन्हां महान मन वाले परावर नाथां दी अुचारी बाणी दा मंगल करदे
हन कि इह अंम्रित दी नदी है अंम्रित दे दो गुण हन, रोग नाश करना ते
मुरदे ळ जिवालंा, सो दज़सदे हन कि इह भरम रूप रोग दे दूर करन

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