Sri Nanak Prakash

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१८६३

४०. नाम महातम सिज़ध गोशट इक (तिखां दा) संत बालका मालो शेख॥
३९ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४१
{अजिज़ते दी शकती वी खिज़चंी} ॥६॥
{इक त्रिखां दा संत बालका संगतीआ} ॥९..॥
{संगतीआ ने सभनां दी शकती वापिस दिवाअुणी} ॥२२॥
{गुरू जी दी शकती} ॥३३..॥
{भंगरनाथ दी खड़ावाण नाल खातर} ॥३५..॥
{कलजुग दा वरतारा} ॥४४..॥
{मालो शेख} ॥५५-७७॥
दोहरा: रे मन तजि आलस सरब, गहु अुज़दम हरिनाम
लोक प्रलोक सहाइ है, पूरहि सगरे काम ॥१॥
सहाइ=सहाई
पूरहि=पूरे करेगा, सिरे चाड़्हेगा
अरथ: हे मन! सारे आलसां दा तिआग कर, वाहिगुरू दे नाम (सिमरण दा)
अुज़दम धारन कर, (एह) लोक ते प्रलोक दा सहाई होवेगा (अर दोहां लोकाण
दे तेरे) कंम सिरे चाड़्हेगा
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनीए स्री तेहण कुलदीपा!
सिध बैठे सभि गुरू समीपा
जहां अजिज़ता कलादिखावति
म्रितक बिहंगन को जीवावति ॥२॥
ब्रिंद लोक तहिण पिखैण तमाशा
तां की दिशि देखो सुखरासा
बूझन हित प्रभू बचन अुचारे
को है इह जो म्रितक जिवारे? ॥३॥
नौका समसर चीर डसायो
तिह धर बैठि न नीर छुवायो
करामात करि कै दिखरावै
लोकन महिण निज मान बधावैण ॥४॥
सिज़ध कहो इहु चेला तेरा
अब के समैण१ न को अन हेरा२
करामात इक सदन तुमारे


१हुण दे समेण विच
२होर कोई नहीण देखिआ

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