Sri Nanak Prakash

Displaying Page 610 of 832 from Volume 2

१९०६

४३. शबद महातम मालो, मांगो, कालू, भगता ओहरी, जापू वंसी, शीहां
गज़जं फिरणा, खहिरा, जोध प्रति अुपदेश॥
४२ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४४
{मालो मांगो} ॥३..॥
{तिंन प्रकार दा तप} ॥५..॥
{थोड़ी मिहनत दा बहुता फल किवेण} ॥६..॥
{कालू खज़त्री} ॥२३..॥
{सनमुख मनमुख लछण} ॥२४..॥
{मैत्री} ॥२७..॥
{करुना} ॥३२..॥
{मुदता} ॥३४..॥
{भगता ओहरी जापूवंशी} ॥४१..॥
{मनमुख करम} ॥४३..॥
{सीहां, गज़जं} ॥५५॥
{वाहिगुरू शबद दे अरथ} ॥६०..॥
{शीहेण दी पैज रही ॥७२..॥
{फिरणा,खहिरा जोध} ॥८६..॥
दोहरा: सतिगुर को सुनि कै शबद, कीन कमावन जाणहि
दुशतर माया ते तरे, नमसकार मम तांहि ॥१॥
दुशतर=जो तरनी कठन होवे, अुह नदी, समुंद्र, झील सर आदि जिस तोण
पार होणा औखा होवे संस: दुसर॥
अरथ: जिन्हां ने सतिगुर दा अुपदेश (अथवा नाम मंत्र) सुणके अुस दी कमाई कीती
है ओह अुखिआई नाल तरी जाण वाली माया ळ तर गए, ओहनां जोग मेरी
नमसकार होवे
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद! सुनि कथा अगारी
बैठहिण प्रभु ध्रमसाल मझारी
नर अनेक दरशन हित आवहिण
शबद सुनहिण, रहि, बहुर सिधावहिण ॥२॥
मालो, मांगो* दै सिख आए {मालो, मांगो}
चरन कमल पर सीस निवाए
हाथ बंदि अरदास बकानी
करहु क्रिपा श्री गुर गुन खानी ॥३॥
निज सुख सोण अुपदेश करीजै
जिह ते जनम मरन कटि दीजै


*पा:-भागो-बी है

Displaying Page 610 of 832 from Volume 2