Sri Nanak Prakash

Displaying Page 613 of 1267 from Volume 1

६४२

३२. गुरचरन मंगल मसीत कौतक॥

{नवाब ळ अुपदेश} ॥१९..॥
{जैराम दी श्रधा} ॥५०॥
दोहरा: नित प्रकाश* स्री गुरु चरन प्रगट सु भानु समान
निखल दैत तम हरन को शरन सदा सुख दान ॥१॥
प्रकाशक=चानंा देण वाले, रौशनी पाअुण वाले
भानु=सूरज सु भानु=स्रेशट सूरज अकसर सु पद ळ आपणे ही अरथ
विखे टिकिआ गुण देके छंद दा वग़न पूरा करन लई वरतिआ जाणदा है
निखल=सारी, कज़ुल संस: नि खिल॥
अरथ: सारी दैत दे हन्हेरे ळ दूर करन विच बी श्री गुरू जी दे चरण सदा सूरज
वाणगू परतज़ख प्रकाशक हन (अते अुन्हां दी) शरण सदा सुख दा दान (देण
वाली है)
श्री बाला संधुरु वाच ॥
अड़िज़ल: सुंदर अधिक मसीत, चिज़त्र भित१ जानिये
चामीकर२ जहिण लिखो, दिपति३ पहिचानिये
तहां जाइ भाठांढ४, जु ान५ न्रिपाल६ सो७
हो सभा आपनी सहिति, जि बैस८ बिसाल९ सो ॥२॥
श्री नानक जी संग, गानघन१० रूप हैण
बिकसो११ कमल बिसाल१२, सु बदन१३ अनूप है
हरख शोक जिन नहीण, अनदहि एक रस
हो ठांढे न्रिप के निकटि, बतावन सुमग१४ तिस ॥३॥


*पा:-प्रकाशक
१चिज़त्रीआण कंधां
२सोने नाल, सुनहिरी
३चमक रिहा
४जा खड़ा होया
५नवाब
६अुह जो धरती दा पालक सी
७अुह
८अुमर
९बड़ी
१०गान दा बज़दल, इकरस गान सरूप
११खिड़िआ
१२बड़ा
१३मुखड़ा
१४चंगा राह

Displaying Page 613 of 1267 from Volume 1