Sri Nanak Prakash

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३३. चरण धूड़ मंगल माता सुलखंी जी दा पेके जाणा॥

{गुरू नानक जी दा लिबास} ॥६॥
{मूले अते चंदोरानी दे कठोर बचन} ॥७..॥
दोहरा: श्री गुरु करुना ऐन की, चरन कवल ले धूरि
जिन मन मुकरहि मांझ कै, कहोण कथा रस रूरि ॥१॥
करुना ऐन=क्रिपा दा घर संस: करुंा ऐन॥
मुकरहि=शीशा, मूंह वेखं दा शीशा संस: मुकर॥
मांझकै=मांजके, मैले होए शीशे ळ जिस पर थिंधे हज़थ लग गए होण धूड़
सुआह आदि नाल मांज के साफ करदे हन
रूरि=अुज़तम, सुंदर संस: रूढ=चमकीली॥
अरथ: क्रिपालता दे घर श्री गुरू जी दे चरणां कमलां दी धूड़ी लै के आपणे मन
(रूपी) शीशे ळ मांज के रस भरी कथा (अगोण होर) कहिणदाहां
चौपई: बाले को मुख शशिहि सुधासी१
कथा कहति श्री अंगद पासी
प्रेम मगन कबि कबि हुइ जावहिण
लगहि समाधि अडोल सुहावहिण ॥२॥
बहुर बिलोचन खोलहिण जब ही
बाला कहिन लगहि पुनि तब ही
करन पुटन संग२ पीवहिण श्रोते३
अमी समान४, त्रिपति नहिण होते ॥३॥
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री नानक किंकर सुखरासा५
रहैण बैस पुनि सुसा६ अवासा
जनु बैराग धारि निज देहा७
प्रगट दिखावति जगत अनेहा८ ॥४॥
किधौण१ शांति रस धारि सरूप


१बाला (आपणे) मुख चंद्रमां तोण अंम्रत वरगी
२कंनां दे डोणनिआण नाल मानो
३सुनने वाले पीणदे हन
४अंम्रत वरगी
५दासां दे सुख दाते
६बेबे जी दे
७देह धारके
८निरमोहता

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