Sri Nanak Prakash

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३६. गुर चरन मंगल मरदाने दी भुख बेबे जी पासोण विदा॥

{बेबे नानकी नाल बचन बिलास} ॥४०
दोहरा: स्री सतिगुर पारस चरन,
मन मनूर मम भेट
कंचन सो होवहि जबहि,
लगहि न जम की फेट ॥१॥
मनूर=मिज़टी वाणगू मर चुका, पर खिंघर हो चुका लोहा लोहे दी मैल
भेट=मिलाप, छुह प्रापत होवेगी फेट=घेर, घेरा, फाही, चोट
अरथ: मेरे मनूर (हो चुके) मन ळ जदोण स्री सतिगुरू जी दे पारस (रूपी) चरनां दी
छुह प्रापत होवेगी, (तदोण) अुह सोने वाणूं (शुध) हो जावेगा (ते फेर अुसळ)
जम दी फेट नहीण लगेगी
दुवैया छंद: लगी समाधि बिते दिन दोअू
लोचन कमल न बिकसे१
मरदाने तन छुधा२ अधिक भी
प्रान जाहिण जिअुण निकसे
को मानव तहिण द्रिशटि न आवै
जिहते जाचहि३ खाना४
हुतो निकटि निरमल जल सीतल
तिख है करहि सु५ पाना६ ॥२॥
दोहरा: तजि करि प्रभु को जाइ नहिण, मन महिण करति विचार
-किह बिधि बीतहि७ संग, इन होवहि कशट अपार ॥३॥
सोरठा: अब के देहि मझार, आवहिण८ मांगो बिदा मैण
जावोण अपन अगार, कठन रहिन है संग इन- ॥४॥
दुवैया छंद: बहुत छुधा महिण भयो बिहाला
भोजन हाथ न आयो


१ना खिड़े भाव नां खुल्हे
२भुख
३मंगे
४भोजन
५अुह (पांी)
६पीवे
७निभेगा
८भाव, होश आअुण ते

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