Sri Nanak Prakash

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४०. चरण रज मंगल तिलवंडी जाणा॥

{राइ बुलार दा मरदाने अज़गे तरला} ॥४०..॥
{चंद्रभान दा खूह} ॥६६॥
दोहरा: पद पंकज की पासु बर,
परम मनोग पराग
निज मन मधुप लुभाइ कै,
कहोण कथा अनुराग ॥१॥
पंकज=कमल
पासु=धूड़ी, देखो अधाय १ दे छंद ८ दे पद अरथ
मनोग=मन ळ पिआरी लगण वाली, सुंदर
पराग=धूड़ी जो फुज़लां दे अंदर तुरीआण अुज़ते हुंदी है
मधुप=भअुरा मधु प=जो शहद पीए
अनुराग=प्रेममई, प्रेम वाली
अरथ: (स्री गुरू जी दे) चरणां कमलां दी स्रेशट धूड़ी (मानोण) डाढी सुंदर पिराग
है, (इस अुपर) आपणे भअुरे (वरगे) मन ळ लुभाइमान करके मैण हुण
प्रेम मई कथा (अज़गोण) आखदा हां
भाव: हर अधाय दे अरंभ विच हुणअज़ड अज़ड सुंदरताई नाल सतिगुर जी दे
चरणां दी टेक ळ आपणी कथा दा आसरा वरणन करदे जा रहे हन
चौपई: बाला कहिति सुनति श्री अंगद
श्री गुरु कथा दैव दै संपद१
त्रिपत न होति श्रवन पुट२ पीए३
जे नानक असथानी४ थीए ॥२॥
बिदत न करति कला जिन गोई५
सुनहिण अजान समान सोई
त्रिकालग दरशी६ सभि जानैण
गुपत बिदत७ निज रिदै पछानैण ॥३॥
जिअुण सांगी बहु बेख करेई


१दैवी संपदा (शुभ गुणां दे) देण वाली है
२कंनां दे डोने
३पीणदे होए
४भाव श्री गुरू अंगद देव जी
५छुपाई है
६तिंनां कालां दे गिआता ते साखी
७प्रगट

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