Sri Nanak Prakash

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४१. गुरचरन मंगल तलवंडी आअुणा॥

{गुरू जी दा प्रवार-गिआन पुत्र वाला} ॥३०..॥
{राइ बुलार दा प्रेम} ॥३८..॥
दोहरा: श्री गुरु पद नख काणति जो,
कविकाके सम जानि
तरल तुरणग मन देय मुख,
कहोण कथा गतिदान ॥१॥
नख=नहुं काणति=सुंदरता
कविका=लगाम संस: कविक:॥
अरथ: स्री गुरू जी दे चरनां दे नहुंआण दी जो सुंदरता है (अुसळ) लगाम दे तुज़ल
जाणके मन रूपी चंचल घोड़े दे मूंह विच दे के मैण मुकत दाइनी कथा
कहिंदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: बैसे श्री गुरु रूप अनूपा
मोर पिता को हुतो जु कूपा
तहिण बिलोक इक नर गा१ नगरी
घर कालू के सुधि दिय सगरी ॥२॥
सुनो श्रोन जब कालू लालू
अुठि करि गवन कियो२ ततकालू
मनहु हुते बहु दिन के पयासे
जल को सुनि दौरे तिहण पासे ॥३॥
दोहरा: श्रोनन सुनि जननी३ मन४
अरनव५ मनहु६ समान
बीची७ जिअुण अुमगति८ चली
सुत९ राणकेश प्रमान१ ॥४॥


१मनुख गिआ
२चले आए
३माता जी
४मन विच
५समुंदर वाणगूं
६मानोण
७लहिर
८अुज़छलदी
९पुज़त्र

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