Sri Nanak Prakash

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२०६१

५४. गुरमंत्र मंगल जोती जोत समावन दीआण तिआरीआण॥
५३ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५५
{भाई कमला} ॥५..॥
{भाई साधारण} ॥४०..॥
{गुरू जी दे निकटवरती सिज़खां दी अुपमा} ॥५५..॥{समाअुण दीआण तिआरीआण} ॥६४..॥
{साधारण जी ळ पुत्राण पास भेजंा} ॥७६..॥
{स्री सुलखंी जी दी बेनती} ॥८५..॥
दोहरा: मोह भूतना मन लगो, किते अुपाइ न जाइ
मंतर सतिगुर शबद ते, करि अज़भास नसाइ ॥१॥
लगो=लगिआ है, चंबड़िआ है
मंतर=ओह वाक जिस दे पड़्हिआण भूत प्रेत नसदे हन, मराद सतिगुर दे
दज़से नाम मंत्र तोण है जिस तोण मोह रूपी भूतनां दूर हुंदा है
सबद अज़भास=सबद दे अभास तोण मुराद नाम जपण दी है
अरथ: मोह (रूपी) भूतना मन ळ चंबड़िआ है किसे अुपाइ नाल लहिणदा
नहीण, (इह भूतना) सतिगुर दे मंत्र तोण नसदा है (सो तूं सतिगुरू जी दे बखशे)
शबद दा अभास कर
चौपई: श्री गुर कथा थोर ही गाई
नहिण मो ते सभि जाइ बनाई
प्रभु की महिमा अूचहुण अूची१
मेरी मत है नीचहुण नीची२ ॥२॥
कैसे समता तिस की होइ
रंचक मेरु३ समझिये सोइ
कीटी चहै जि सागर तरनो
किस प्रकार है पारन परनो४ ॥३॥
अब जिह बिधि बैकुंठ सिधारे
तिअुण मैण कहौण सुनहु हित धारे
एक दिवस चलदल५ की छाईबैठे हुते भोर६ जग साईण ॥४॥


१अुज़चिआण तोण अुज़ची है
२नीवीण
३सुमेरु परबत तोण किंका भर
४पार पैंा
५पिज़पल
६सवेरे

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