Sri Nanak Prakash

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४२. चरण रज मंगल-तलवंडी प्रसंग॥

दोहरा: चूरन श्री गुरु चरन रज, राग दैख मन रोग
करि कै तांहि अनाम हौण, कहौण कथा निरसोग ॥१॥
चूरन=पीसी होई शै, कोई दवाई जो धूड़े वाणगू होवे, हाग़मे दी दवाई,
कोई दवाई संस: चूरण॥
अनाम=अरोग संस: अनामय, अन आमय=रोग॥
निरसोग=ऐसी कथा जो सोग तोण निरसोग करे खुशी देण वाली
अरथ: राग ते दैख मन दे (दो) रोग हन, श्री गुरू जी दे चरनां दी रज (दोहां दी)
दवाई है (इस दवाई नाल) इस (मन) ळ अरोग करके मैण खुशी देण
हारी कथा (अगोण) कहिंदा हां
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: असन अचव करि म्रिदुल सुभाअू
बैसे निकट बिराजति राअू१
तब त्रिपता बिरहातुर२ आई
सुत राखन को मन ललचाई ॥२॥
घुंड करे मुख बैठि समीपाबोली बचन संग अवनीपा३
बंदि हाथ दै दीन भवंती४
सुनहु राइ जी! मोर बिनती ॥३॥
करहु आप इह वड अुपकारा
मम सुत को किव रखहु अगारा५
अस प्रकार कहि करि गुरु माता
रोदति६ लोचन ते जल जाता ॥४॥
सुनति राइ को गर७** भरि आवा
धरि धीरज पुनि बचन अलावा


पा:-निहसोग वा-अनसोग
१जिथे बिराजदा है राइ बुलार
२विछोड़े कर दुखी
३राजे नाल
४हुंदी है
५घर
६रोणदी है
७गला
**पा:-अुर

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