Sri Nanak Prakash

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४३. चरण कमल मंगल गयान अुपदेश तुलसां॥

{राइ प्रति गान अुपदेश} ॥२..॥
{राइ ळ दिज़ते अुपदेश दा निचोड़} ॥४४..॥
{तुलसां दासी} ॥५६..॥
दोहरा: स्री गुरू पग शोभा बिमल, पिंजर सर पहिचान
मन खंजन तहिण पाइकै, कहोण कथा गुनखानि* ॥१॥
बिमल=निरमल, अुज़जल पिंजर=पिंजरा
सर=रज़सी, लड़ी सरी, मोतीआण दीमाला (अ) सदरश, तुज़ल
खंजन=इक पंछी जिसळ ममोला कहिंदे हन, एह बहुत चंचल हुंदा है, इस
करके कवि जी ने मन नाल अुपमां दिज़ती है, इह पिंजरे भी थखा ही पैणदा है, पै
जाए तां मर जाणदा है इहो कवि जी दा कटाख है कि मन जे पिंजरे पै गिआ तां
एह आपा पलटके शुज़ध हो जाएगा
अरथ: श्री गुरू जी दे चरनां दी अुज़जल शोभा (मानोण) मोती माला दा पिंजरा है, (मैण
आपणे) मन रूपी ममोले ळ अुस विच पा के (हुण होर) कथा (जो) गुणां दी
खां है, कहिंदा हां अथवा गुणां दी खां गुर नानक (देव जी दी होर) कथा
वरणन करदा हां
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनति बेनती करी जु राअू१ {राइ प्रति गान अुपदेश}
बोले श्री गुरु म्रिदुल सुभाअू
भो भूपति! तुम२ आपन३ हंता४
किह महिण धरी? कहहु बिरतंता ॥२॥
तुरक जनम मम५, दीन दयाला!
आरबला६ ब्रिध, मम७ सित८ बाला९
चरम१० सिथल११, मैण निरबल होयो

*पा:-सुखदान व, गतिदान
१राए ने
२तुसां
३अपनी
४हंगता (मैण पना)
५मेरा
६आयू
७मेरे
८चिज़टे
९वालहन
१०चमड़ा
११ढिज़ला है

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