Sri Nanak Prakash

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२०९१

५६. गुरू मेहर याचना, जोती जोत समावं दीआण तिआरीआण॥
५५ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५७
{संसार दी नाशवानता दा अुपदेश} ॥६-३०॥
{इज़क बार समा गए} ॥४०..॥
{स्रीचंद लखमीदास जी पहुंचे} ॥५८..॥
सैया: करुना गुर जाचि सदा सुखदा
मन केर बिकार करो हरना
हरि ना भजनो भव को करता
महिमा गुनि कै परिहो शरना
शरना मन आनि हंकार तजो
थिर होति नहीण तन मैण तरुना
तरना जगसिंधु सुखैन चहो
कहिना* लखि बाद, गहो करना ॥१॥
करुना=मेहर जाचि=मंगो करो हरना=दूर करो
हरि ना=हरि ना=हरी ळ (अ) पाठांत्र है-हरिना भजनां भव को तरना, तां
अरथ बणेगा=हरि ळ भजना संसार ळ तरना है
भव=संसार गुनिकै=गुणके, सिमरके
शरना=शरण (अ) सरणामन=तिलक जाण वाला मन (आनि=) वज़स करकेतरुना=चंचल (अ) जुआनी, फिर तुक दा अरथ इह बणेगा-इस सरीर दी
जुआनी नहीण रहिणदी (इस करके) मन ळ शरनी पा के (जुआनी दा) हंकार
तिआगो
तरना=तरके पार होणा (अ) पाठांत्र है-तरना जग सिंधु सुखैन ही हो
करना लख बाद गहो करुना फिर अरथ इस तुक दा इह होअू-जगत रूपी
समुंदर दा तरना सुखैन ही हो जावे जे (साईण) दी (करुना=) मेहर ळ पकड़
लओ ते अपणी (करना=) करनी ळ बिरथा जाण लओ
इस पाठ विच:-- करना दी मुराद है, अपना करना ते करुना तोण मतलब है
साईण दी मेहर ठीक बी इही जापदा है, किअुणकि आरंभक पद इस सिंघा
विलोकन सैये दा करुना है ते अंत बी करुना ही चाहीए
अरथ: मन दे विकाराण ळ दूर करो (अते) गुरू जी दी मेहर (सदा) मंगो, (किअुणकि
इही) सदा सुखदाती है, हरि ळ सिमरन ना करना संसार ळ (सज़त) कर
(दिखाअुणदा है, तांते गुरू जी दा) जस करके शरन जा पओ, (इअुण) मन ळ
शरण विच लिआके हंकार ळ दूर करो (इस बिना इह) चंचल तन विच
थिर नहीण हुंदा (टिकके नहीण बहिणदा) (जे तुसीण) जगत रूपी समुंदर ळ सौखा
तरना चाहुंदे हो तां कहिंे ळ ब्रिथा जाणो तेकरने ळ पकड़ लओ


*पा:-करना

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