Sri Nanak Prakash

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४६. चरण मंगल अज़क खज़खड़ीआण खुवाके मरदाने दी भुख निवारी कावरू
देश॥

{मरदाने ळ खज़खड़ीआण खुआईआण} ॥११..॥
{कावरू देश} ॥२१॥
{मरदाने दा मीढा बणना} ॥२९..॥
दोहरा: श्री गुर चरनन धान तरु,
प्रेम नीर तहिण पाइ
कविता कुसम प्रफुज़लहीण,
सुफल अरथ समुदाइ ॥१॥
सदा=सदा, हमेश, जो कदे न जाए
अटल=अटज़ल, जो कदे ना टले, मुराद है जो इकरस रहिणदी है सूरज वाणू
सवेरे होर, दुपहिरे होर, लोढे पहिर होर, सिआले होर, हुनाले होर नहीण हुंदी
आतप=धुज़प यातना=पीड़, तड़फनी, ओह पीड़ जो नरक विज़च हुंदी है
समीप=नेड़ेसमुदाइ=सारे
अरथ: श्री गुरू जी दे चरणां दा धिआन ब्रिज़छ (समान) है, अुसळ प्रेम (रूपी) पांी
पाईए (तां) कविता (रूपी) फुज़ल प्रफुज़लत हुंदे हन ते सारे अरथां दे स्रेशट
फल (पैणदे हन)
श्री बाला संधुरु वाच ॥
भुजंग प्रयात छंद*: चले पंथ नाथं भए दोन साथा
दया सिंध रूरी भनैण गयान गाथा१
गए धाम लालो गुबिंदं मुकंदा
करी बंदना२ हेरि बाढो अनदा ॥२॥
डसायं प्रयंकं बसाए३ हुलासं
मनो पान कीन अमी४ भूर पासं५
रहे पंच रैना चले फेर आगै
लए नाम जाण के वडे पाप भागैण ॥३॥
पदं बंदि लालो गयो दूर संगं


*पा:-भुजंग छंद ॥
१गयान दीआण गज़लां
२भाव लालो ने
३बैठाए
४अंम्रत
५बहुत तिहाए ने

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