Faridkot Wala Teeka

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अपने सरीर ही अंदर हरी है तिस के (रंगोण) अनंद को किअुण नहीण भोगती॥
प्रमाणु-काहे रे बनु खोजन जाई॥ सरब निवासी सदा अलेपा तोही संगि समाई॥
सहु नेड़ै धन कंमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥
सहु जो वाहिगुरू पती है सो अती नजीक है किआ अपना आप ही सरूप है (धन)
हे जगासी रूपी कमली इसत्री बाहिर किआ ढूंढती हैण॥ यथा-सो प्रभ नेरै हूं ते नेरै॥ जे
कहे पती कैसे प्रापति होवै? तिस पर कहते हैण॥
भै कीआ देहि सलाईआ नैंी भाव का करि सीगारो ॥
वाहिगुरू जी का जो भै धारन करना है इह बुध रूपी नेत्रां मेण सुरमेण की सलाईआण
देह भाव पाअु और प्रेम का सिंगार धारन करु॥
ता सोहागंि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥
हे जगासी रूपी सुहागंी तब तूं तिस वाहिगुरू के साथ ततपर होई जाणीएगी
जब सो (सहु) पती तेरे मै पिआर धारन करेगा॥१॥प्रशन: एह जगासी इसत्री अपने बल कर किअुण नहीण पा लैणदी? तिस पर कहते
हैण॥
इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥
जो तिस पती को न भावे (इआणी बाली) अगात इसत्री रूप जगासी भै औ प्रेम
से बिना का कर सकती है॥
करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥
अूचा रुदन करने आदी यतन बहुत ही करती है पं्रतू बिना हरी की दया ते अुह
इसत्री सरूप को कदाचित नहीण पावती॥
विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥
जेकर बहुतेरा ही धावती फिरे निसकाम करम बिना (किछु) रंचक मात्र भी नहीण
पाईता॥
लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥
(लब) खाणे का लालच (लोभ) जमा करने का अरु अहंकार आदी विकार की
(माती) मसती कर माइआ बीच समाई होई का ततपर होई होई है॥
इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥
इनां पूरबोकत विकारोण कीआण बातां करके पती वाहिगुरू नहीण पाईता तां ते
जगासी इसत्री अगात (भई) होइ रही है॥२॥
प्रशन: इह अगात इसत्री कैसे तिस पती को प्रापति होवै?
जाइपुछहु सोहागंी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥
(वाहै) ओह जो संत जन रूपी सोहागंीआण हैण तिन के पास जाइकर पूछे जो किनी
(बाती) गलां कर पती को पाईता है॥
जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥
तब ओह सुहागंी संत जन अुत्र देते हैण जो किछ सो वाहिगुरू पती करे तिस को
भला करके ही मज़नीए (हिकमति) सिआणपां (हुकमु) जो हे प्रमेसर इअुण तैने किअुण कीआ
अब ऐसे कर सो इनां ळ चित से अुठाइ देईए भाव यहि वाहिगुरू के भांे मेण प्रसंन
रहीए॥

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