Faridkot Wala Teeka

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तपीआ होवै तपु करे तीरथि मलि मलि नाइ ॥१॥
जो जोगी होवे है वहु जोग की किरिआ करता है जो भोगी होवै है वहु खाइ कर
प्रसिंन होता है जो तपसीआ है सो तप करता है जो तीरथ जात्री है सो तीरथोण मेण मल मल
नाअुता है॥१॥
तेरा सदड़ा सुणीजै भाई जे को बहै अलाइ ॥१॥ रहाअु ॥
हे हरी जे कोई तेरा प्रेमी तेरा जस बैठके कहे तअु मैण सुणां॥
जैसा बीजै सो लुंे जो खटे सुो खाइ ॥
अगै पुछ न होवई जे संु नीसांै जाइ ॥२॥
जैसा बीजता है किसान तैसा ही अनाज काटता है तैसे ही जैसा पुंन पाप रूप करम
कोई करता है तैसा ही अंतसकरण मैण अद्रिसट रूप होके इसथित होता है सो इस जनम
मेण भोगता है आगे जो धरम अधरम खज़टेगा भाव जमा करेगा अुस का फल सुख दुख
जनमाणत्रोण मैण भोगेगा॥ परंतू जो पुरख (संु नीसांै) सहत परवाने जावेगा भाव नाम
संयुकत जावेगा भाव नाम संयुकतजावैगा तिस का परलोक मेण हिसाब नहीण पूछीएगा॥२॥
तैसो जैसा काढीऐ जैसी कार कमाइ ॥
जो दमु चिति न आवई सो दमु बिरथा जाइ ॥३॥
जैसा पुरश काम करता है तैसा ही तिस का नाम कहीता है हे परमेसर परंतू तूं
जिस सास मेण चित न आवै सो सास बिरथ जाता है॥३॥
इहु तनु वेची बै करी जे को लए विकाइ ॥
नानक कंमि न आवई जितु तनि नाही सचा नाअु ॥४॥५॥७॥
इस सरीर को वेचा मुल करके जो कोई विकदे को गुरू संत लवे भाव देह अभिमान
ते रहत हो सेवा करे मोल विके का मान नहीण होता गुरू जी कहते हैण हे परमेसर एह तन
किसे कंम नहीण आअुता जिस सरीर मेण तेरा सचा नाम नहीण॥४॥५॥७॥
सूही महला १ घरु ७
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सिधोण ने गुरू जी से कहा आप कोई जोग की जुगति कहो? तिस पर कहते हैण॥
जोगु न खिंथा जोगु न डंडै जोगु न भसम चड़ाईऐ ॥
(खिंथा) खफनी वा गोदड़ी फाहुरी डंडा हाथ मैण लीआ भसम सरीर पर लगाई॥
इन बातोण से जोग प्रापत नहीण होता॥
जोगु न मुंदीमूंडि मुडाइऐ जोगु न सिंी वाईऐ ॥
कंन पड़ाए मुंद्रै पहिरे सिर मुना लीआ सिंगीआण वजाईआण इनोण भेखोण से (जोगु
न) सरूप मैण जुड़ना नहीण होता॥
प्रशन: जुड़ना कैसे हो? अुतरु॥
अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥१॥
माया के बीच होते ही असंग रहीए भाव सभावक जो हो अुसी मेण प्रसंन हो कर
आपको असंग जाण सै सरूप मैण ब्रिती जोड़ीए इस प्रकार पाईदी है॥ बाहरले भेख से
नराला जोग कथन करते हैण॥

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