Faridkot Wala Teeka

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घर महि ठाकुरु नदरि न आवै ॥
गल महि पाहणु लै लटकावै ॥१॥
जो रिदे मेण साखी रूप सचा वाहगुरू है सो नदर नहीण आवता अर पथरोण को लैकर
गल मैण लटकाअुता है॥१॥
भरमे भूला साकतु फिरता ॥
नीरु बिरोलै खपि खपि मरता ॥१॥ रहाअु ॥
भरम मैण भूला हूआ साकत फिरता है अर पांी को रिड़कता है अरथात निसफल
करम करता है इसी मैण खप खप कर मरता है॥
जिसु पाहण कअु ठाकुरु कहता ॥ओहु पाहणु लै अुस कअु डुबता ॥२॥
जिस पथर को इह ठाकुर कहता है वहु पथर लै के अुसी को डूबता है॥२॥
गुनहगार लूं हरामी ॥
पाहण नाव न पारगिरामी ॥३॥
(गुनहगार) गुनाहीण हे निमक हराम, पथर की बेड़ी चड़्हके कबी (गिरामी) समूह
संसार समुद्र से पार नहीण होईता ॥३॥
गुर मिलि नानक ठाकुरु जाता ॥
जलि थलि महीअलि पूरन बिधाता ॥४॥३॥९॥
सतिगुरोण को मिल कर (ठाकुरु) वाहिगुरू को जाणिआ है स्री गुरू जी कहिते हैण जल
सथल प्रिथी अकास मैण पूरन (बिधाता) करम फल परदाता वाहिगुरू को देखा है॥४॥३॥९॥
अुतम सखी से मधम सखी पूछती है॥
सूही महला ५ ॥
लालनु राविआ कवन गती री ॥
सखी बतावहु मुझहि मती री ॥१॥
तैने पिआरा किस चाल अरथात रहिंी कर भोगिआ है हे सखी कहु मेरे को
(मती) सिखिआ बताइ दीजीए॥१॥
सूहब सूहब सूहवी ॥अपने प्रीतम कै रंगि रती ॥१॥ रहाअु ॥
हे सखी मन बांणी तन करके अपने प्रीतम के तूं रंग प्रेम मेण रती हूई हैण॥
पाव मलोवअु संगि नैन भतीरी ॥
जहा पठावहु जाणअु तती री ॥२॥
नेत्रोण की धीरी साथ तेरे पैर मलती हूं जहां भेजेणगी मैण तहां ही जाअूणगी॥२॥
जप तप संजम देअु जती री ॥
इक निमख मिलावहु मोहि प्रानपती री ॥३॥
री सखी जप करना औ चित की इकाग्रता रूप तप पुना बाहज इंद्रीओण का रोकना
रूप संजम पुना जो ब्रहमचरज रूप जत है सो सभ मैण आप को देवोणगी भाव इनोण का
अभिमान छोड कर मैण सेवा करूंगी इक निमख मात्र (प्रान पती) साखी चैतन को मेरे को
मिला दे री सखी॥३॥

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