Faridkot Wala Teeka

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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वार सूही की सलोका नालि महला ३ ॥वाहिगुरू से जीव का विछोड़े अरु मिलाप का प्रकारु देखावते हूए वार अुचारन
करते हैण॥
सलोकु म ३ ॥
सूहै वेसि दोहागंी पर पिरु रावण जाइ ॥
छुटड़ इसत्री की निआई जो प्रमेसर से बेमुख हैण सूहे वेस विसोण मेण प्रीति करके
(परु पिर रावण जाइ) देवी देवतोण की सेवा करनेण जाता है॥
पिरु छोडिआ घरि आपणै मोही दूजै भाइ ॥
(पिरु) पती जो वाहिगुरू है सो (घरि) अपने रिदै मैण छोडिआ है अरु दूजे भाव मैण
बुधी मोही गई है॥
मिठा करि कै खाइआ बहु सादहु वधिआ रोगु ॥
(मिठा) भाव सुख रूप करकै बिसोण को भोगा था बिसे रसोण से बहुत रोगु वध
गिआ॥
सुधु भतारु हरि छोडिआ फिरि लगा जाइ विजोगु ॥
सुध भरता जो हरी है सो छोडिआ है फिर जनम कर विछोड़ा ही लाग जाता है॥
गुरमुखि होवै सु पलटिआ हरि राती साजि सीगारि ॥
जो गुरोण के सनमुख होई है तिसने सूहा वेस अुतार के मजीठा वेसु बदलिआ है
भाव वाहगुरू की भगती करी है औ साधन रूप सिंगारु (साजि) बना कर हरी मैण राती है॥सहजि सचु पिरु राविआ हरि नामा अुर धारि ॥
हरी के नाम को रिदे मैण धार के सुख रूपु पारे के आनंद को सुभावक ही भोगा
है॥
आगिआकारी सदा सुोहागंि आपि मेली करतारि ॥
सो आगाकारी है अर वहु आप करतार ने मेल लई है इस ते ओहु सदा
सुहागंि है॥
नानक पिरु पाइआ हरि साचा सदा सुोहागंि नारि ॥१॥
स्री गुरू जी कहते हैण जिसने हरी रूप सज़चा भरता पाया है सो जीव रूप इसत्री
सदा ही सुहागंि है॥१॥
म ३ ॥
सूहवीए निमाणीए सो सहु सदा समालि ॥
हे सूहे वेस वालीए मन रहित जो गुरमुख इसत्रीओण ने संभारिआ है सो सचा पती
तूं भी सदा संभालु॥
नानक जनमु सवारहि आपणा कुलु भी छुटी नालि ॥२॥
जब संभालेगी तब अपना जनम सफल करेणगी स्री गुरू जी कहते हैण तेरे साथ कुल
भी छूट जाएगी॥२॥
पअुड़ी ॥

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