Faridkot Wala Teeka

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रामकली बांणी भगता की ॥
कबीर जीअु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
कोई जोगी कबीर जी पास आइआ तिसने कहिआ कि मदरा पीआ करो तौ समाधी
का अनंद होवै तिस प्रती कबीर जी कहिते हैण हम तो ऐसा मदरा आगे ही पीते हैण जो
किसी पास होवै तौ हमै देवै जोगी कहिता है कैसा चाहीए? तिस प्रती कहिते हैण॥
काइआ कलालनि लाहनि मेलअु गुर का सबदु गुड़ु कीनु रे ॥
हे भाई जिसने देह रूप (कलालनि)१ मटी करी है तिस मैण गुरोण का सबदु गुड़
कीआ है लाहनि पूर भाव मदरा की सक आदि समग्री मेल अुपाइआ है सोई सफुट करते
हैण॥
पंना ९६९
त्रिसना कामु क्रोधु मद मतसर काटि काटि कसु दीनु रे ॥१॥
हे भाई त्रिशना काम क्रोध हंकार औ ईरखा इनां बिकारोण का जो काटना है सोई
(काटि) कुतर के (कसु) सज़कमटी बीच दीआ है॥१॥
कोई है रे संतु सहज सुख अंतरि जा कअु जपु तपु देअु दलाली रे ॥
एक बूंद भरि तनु मनु देवअु जो मदु देइ कलाली रे ॥१॥ रहाअु॥
हे भाई ऐसा कोई संत है जो आतम सुख को आपने अंतर भोग रहा है जिसको मैण
जप तप दलाली दे देवाण जो मेरे कअु तिस आतम आनंद रूप मदरा की एक बूंद भर देह
रूप (कलाली) मटी के बीच से देवे तौ मैण मन तिस को बखसीस कर देवोण॥
भवन चतुर दस भाठी कीनी ब्रहम अगनि तनि जारी रे ॥
चौदां भवन जो नास रूप जाणिआ है वा चौदां इंद्रे वाला तनु इह भठी बनाई है
और तिसु मैण ब्रहम गिआन का जो प्रकाश हूआ है एही अगनी जलाई है॥
मुद्रा मदक सहज धुनि लागी सुखमन पोचनहारी रे ॥२॥
औ अूपर ते मद का मूंदंा एह कीआ है जो शांति रूप हो कर (धुनि) ओअं मंत्र मैण
ब्रिती लगी है औ (सुखमन) जो मन को सुख देवै भगती एह पोचन हारी है चोइके जिस
घड़ी मैण मद पड़ता है अुस अूपर पोचा फेरीता है ईहां अुस घड़ी दा नाम पोचनहारी
है॥२॥
तीरथ बरत नेम सुचि संजम रवि ससि गहनै देअु रे ॥
जो तीरथ कीए हैण और सूरज के औ क्रिस चंद्राइं आदी बरत राखे हैण औ नेम
धारे हैण पवित्रता करी है पुना जो इंद्रे रोके हैण इहु सभ साधन तिस के आगे गहणे धर
देवो वा एह भूछण बखशश मैण दे देवाण भावएह साधन करके अुनको अरपण कर देवोण॥
सुरति पिआल सुधा रसु अंम्रितु एहु महा रसु पेअु रे ॥३॥
हे भाई अुतम प्रीती रूप पिआला है (सुधा रसु अंम्रितु) अंम्रत का भी अंम्रित रस
जो है आतम सुख सो एह महांरस मद तिस से पान कर लेवो॥३॥
निझर धार चुऐ अति निरमल इह रस मनूआ रातो रे ॥


*१ ारवाड़ देस मैण सराब निकालने वाली मटी ळ 'कलालनि' आखदे हैण॥

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