Faridkot Wala Teeka

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पंना १३८५
सति नामु करता पुरखु निरभअु निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥सवये स्री मुखबाक महला ५ ॥
एक समेण ब्रहमलोक के बीच देवतिओण की सभा मैण वेदोण संयुगत ब्रहमाण जी इसथित
हूए थे तिस समै स्री विशन देव जी आए तिन के सनमान वासते सरब देवते खड़े हूए
परंतू वेदोण सहित ब्रहमाण जी ने हंकार को धार कर अुन का सनमान नहीण कीआ तब विशन
जी ने कोप कर सराप दीआ कि तुमने हंकार करके म्रियादा नहीण राखी है तां ते मात लोक
मैण जाइ करके मनुख सरूप धार कर गिआन से रहित होवो तब स्राप सुन कर पीछे ब्रहमाण
जी ने वेदोण सहित विशन जी कौ नमसकार करके सराप का अंत पूछा औ अपने अपराध को
बखशाया तब हरी जी ने कहा कि तुम एक एक वेद चार चार सरूप धारो औ ब्रहमाण के
समेत सतारह रूप ब्राहमणोण के भटोण की कुल मैण जनमो जब मैण कलयुग बीच स्री गुर नानक
नाम अवतार धारन करौणगा पुना पांचवाण अवतार स्री गुरू अरजन जी नाम होइगा तब तुम
मुझ को मिल कर अुसतती अुचारन करोगे पुना गिआन सरूप होइ कर ईहां प्रापत
होवेगे॥ भगवंत के ऐसे बचन सुन करके मात लोक मैण सतारह सरूप धारन कीए औ ब्रहमाण
जी का नाम भिखा हूआ वहु सतारह ही मिल कर अनेक तीरथोण मैण कलान के हेत एक
बरस विचरते रहे किसी से शांती ना प्रापत भई पुन सतिगुरोणकी सोभा सुन कर स्री
अंम्रितसर जी मैण आए स्री गुरू अरजन साहिब जी का दरशन करके चित को शांती हूई
तब सरधा को धार कर बेनती करी हम आप की अुसतती करनी चाहते हैण जिस परकार के
छंद आप स्री मुख ते अुचारन करो हम तिसी परकार छंद अुचारण करेण तब तिनकी बेनती
सुन कर स्री गुरू जी तिन की बेनती सुन कर स्री गुरू नानक देव जी को ब्रहम सरूप जान
कर अुसतती अुचारन करी है सोई अब कहिते हैण॥
आदि पुरख करतार करण कारण सभ आपे ॥
हे आदि पुरख सरब जीवोण के करता (करण कारण) जगत के करणहारे महतत
आदी तिनोण का कारण जो माया है सो सरब रूप तूं आपे ही हो रहा हैण॥
सरब रहिओ भरपूरि सगल घट रहिओ बिआपे ॥
सरब जगत तेरे मैण भरपूर होइ रहिआ है और सगल घटोण मैण तूं विआपक हो
रहा हैण॥
बापतु देखीऐ जगति जानै कअुनु तेरी गति सरब की रखा करै आपे हरि
पति ॥
तांते तुझको जगत मैण बिआपत रूप देखीता है तेरी गती कअुन जाने भाव कोई
नहीण जान सकता है हे हरी तूं सरब का पती हैण और आपे अपने दासोण की रखा करता
हैण॥
अबिनासी अबिगत आपेआपि अुतपति ॥
हे अबिनासी रूप तूं आपे आप सरब का ही अुतपति करता है तां ते तेरी गती को
कोई नहीण जान सकता है॥
एकै तूही एकै अन नाही तुम भति ॥

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