Faridkot Wala Teeka

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अब स्री गुरू रामदास साहिब चौथे पातशाह जी अुसतती अुचारन करते हैण॥
सवईए महले चअुथे के ४
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
इक मनि पुरखु निरंजनु धिआवअु ॥
गुर प्रसादि हरि गुण सद गावअु ॥
मन को इकाग्र करके निरंजन पुरख को धिआवता हूं॥ जिस हरी की क्रिपा ते स्री
गुरू रामदास साहिब जी के सरबदा काल गुणों को गाइन करूं॥
गुन गावत मनि होइ बिगासा ॥
सतिगुर पूरि जनह की आसा ॥
जिन सतिगुरोण के गुणों को गावतिआण होइआण मन मैण (बिगासा) अनंद प्रापति
होवेगा हे सतिगुर जी तां ते मैण दास की आसाको पूरन करीए॥
सतिगुरु सेवि परम पदु पायअु ॥
अबिनासी अबिगतु धिआयअु ॥
स्री सतिगुर अमरदास साहिब जी को सेव करके आपने परम पद पाया है और
आपने अबिनासी अबिगत वाहिगुरू को धिआया है॥
तिसु भेटे दारिद्र न चंपै ॥
कल सहारु तासु गुण जंपै ॥
जंपअु गुण बिमल सुजन जन केरे अमिअ नामु जा कअु फुरिआ ॥
हे सतिगुरू जी तिस आपके मिलने से दरिद्र नहीण (चंपै) दबावता है॥ स्री
कलसहार जी कहिते हैण मैण तिस आपके गुणों को (जंपै) अुचारन करता हूं हे भाई मेरे
साथीओण (जन) दासोण के सजन जो गुरू जी हैण तिन के निरमल गुणों को जपो जिसको अंम्रित
रूप नाम (फुरिआ) फलीभूत भया है॥
इनि सतगुरु सेवि सबद रसु पाया नामु निरंजन अुरि धरिआ ॥
अपने साथीओण प्रती कहिते हैण॥ हे भाई इन गुर रामदास साहिब जी ने स्री गुरू
अमरदास साहिब जी की सेवा करके निरंजन का नाम रिदे बीच धारन कीआ है औ (सबद
रसु) ब्रहमानंद पाया है॥
हरि नाम रसिकु गोबिंद गुण गाहकु चाहकु तत समत सरे ॥हरी के नाम के रसक और गोबिंद के गुणों के (गाहकु) ग्रहिं करने वाले वा
खरीदंेहारे और (तत) तत सरूप को समता द्रिसटी से (सरे) संपूरन ब्रहमंड मैण
(चाहिक) देखने वाले हैण॥
कवि कल ठकुर हरदास तने गुर रामदास सर अभर भरे ॥१॥
स्री 'कल' कवी जी कहिते हैण हे (ठाकुर) चौधरी वा सामी हरदास जी के (तनै)
पुत्र स्री गुरू रामदास साहिब जी आपने जिनोण के रिदे रूपी तलाव प्रेम से खाली थे ते
रिदे प्रेम आदी गुणों करके भर दीए हैण॥१॥
छुटत परवाह अमिअ अमरा पद अंम्रित सरोवर सद भरिआ ॥

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