Sri Nanak Prakash

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भाव: भव बंधन हन ओह रुकावटां जो साईण वज़ल लगण नहीण देणदीआण अुन्हां दा
मूल है, हअुमैणहअुमैण बीमारी है सतिगुर जी ने दज़सिआ है कि हअुमैण
महान रोग है यथा:- हअुमै दीरघ रोगु है आसा वार म: १ अुस रोग ळ दूर
करन वाली दवाई वाहिगुरू नाम है यथा:-
दारू भी इसु माहि ॥
किरपा करे जि आपणी ता गुर का सबदु कमाहि ॥ आसा वार म: १॥

नाम दी कमाई नाल हअुमै रोग दूर हुंदा है
जिहड़ा नाम ळ चार प्रकार दी औखधी लिखिआ है, अुस दी वीचार एह है:-
१. शोधन: मन दा इक विकार है मैल=पापां वल रुची, इस ळ नाम सिमरण
दूर कर देणदा है यथा गुरवाक:-
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ
२. शमन: मन दा इक विकार है, विकशेप=खिंडे रहिंा इस रोग ळ नाम
सिमरण टिकाअु बखशदा है यथा गुरवाक:-
मनु परबोधहु हरिकै नाइ ॥ दहदिसि धावत आवै ठाइ ॥ गअु: सुख. म: ५
३. आकरखं: मन दी इक बीमारी है-विशाशकती=इंद्रिआण दे भोग रसां विच
आशकत होणा नाम सिमरण नाल मन दिंद्रै-भोगां तोण अुप्राम हो
मानोण लघन करदा है यथा गुरवाक:-
जासु जपत वसि आवहि पंचा ॥ गअु: म: ५
४.पोशटक: मन दैवी गुणां दे धावन तोण कमग़ोर ते द्रिशटा पद विच सिज़धा खड़ा
हो परमातमा नाल सदा लगे रहिं तोण नितांा है नाम सिमरण
नाल दैवी गुण सुते सिज़ध आ टिकदे हन अर द्रिशटा पद विच
खड़ोना ते साईण मेल विच लगाअु अरथात कमल प्रकाश प्रापत हो
जाणदा है यथा गुरवाक:-
खेम सांति रिधि नव निधि ॥ बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ॥ गिआनु स्रेसट अूतम इसनानु ॥
चारि पदारथ कमल प्रगास ॥ सभ कै मधि सगल ते अुदास ॥
सुंदरु चतुरु तत का बेता ॥ समदरसी एक द्रिसटेता ॥
इह फल तिसु जन कै मुखि भने ॥ गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
गअु: सुख: म: ५
चौपई: जे भव सावज करहिण अतंका
नामु केहरी तकहिण सु अंका
जे नर ग्रसे कलूख अहेशा*
जाहिण शरन सो नाम खगेशा ॥७६॥
सावज=सामज-हाथी
सावक=हाथी दा बज़चा किसे जानवर दा बज़चा*पाठांत्र-जे नर ग्रासे कलुख अहेशा-बी है

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