Sri Nanak Prakash
१०८३
६०. गुरचरन मंगल सुमेर ते गोरख, मछिंद्र, लहुरीपा नाल चरचा॥
{शुभ गुणां दी सैना नाल दिगविजै} ॥१..॥
{गोरख मिलिआ} ॥१५..॥
{मछिंद्र} ॥३७..॥
{लुहरीपा} ॥४६..॥
{कमल दल पंखड़ीआण} ॥४९..॥
{दस प्राण} ॥५०॥
{पंज तज़त} ॥५१॥
{पंझी प्रक्रितीआण} ॥..५३॥
{कथा सुणके गुरू जी दी ७ दिन समाधी लगी} ॥५५..॥
दोहरा: श्री गुर चरन सरोज को,
प्रेम अमी पहिचान
अमर अजर सुख पाइ हैण,
जे करिही तिह पान ॥१॥
सरोज=कवल अमी=अंम्रित संस: अम्रितप्राक्रित, अमिअ हिंदी, अम,
अमि, अमी॥
अमर=जो ना मरे, सदा थिर
अजर=जिसळ बुढेपा ना आवे, जो इक रस रहे
पान=पींा
अरथ: श्री गुरू जी दे चरनां कमलां दा (जो) प्रेम है (अुस ळ) पछां (कि अुह)
अंम्रित है जो अुस ळ पींगे (ओह) अमर ते अजर सुख प्रापत करनगे
श्री बाला संधुरु वाच ॥ {शुभ गुणां दी सैना नाल दिगविजै}
दिगबिजै हेत१ साजि बेदी कुलकेतु दल२,
कबिज़त:
चले दंभ दलिबे को, दलिनि३ बिदारिया४
भगति५ की केतु६, पट७ प्रेम के समेत
करि कीरिति८ निशानो९ घहिरानो१० घन१ भारिया२
१जगत जिज़तं लई
२फौज
३(आसुरी संपदा दीआण) फौजाण ळ
४दूर करन वाले
५भगती (रूपी)
६झंडा
७बसतर (जो झंडे ते झूलदा है)
८(वाहिगुरू दा) जस (रूपी)
९धौणसा
१०वज़जदा है