Sri Nanak Prakash
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६२. श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी मंगल सिज़ध गोपी चंद, ईशर नाथ, लगर,
मंगल नाथ, संभू नाथ नाल चरचा॥
{गोपी चंद} ॥१.. ॥ {ईशर नाथ} ॥६..॥
{लगर} ॥९.. ॥ {मंगलनाथ} ॥१२, २२..॥
{श्रधावान सिज़ध} ॥१८-१९ ॥ {गुरू जी ने मंगलनाथ ळ सराहिआ} ॥३३..॥{संभू नाल चरचा} ॥३५..॥
-बंदति गुबिंद सिंघ पद अरबिंद
कबिज़त:
दुख दुंद को निकंद गुरू मेरो ई मुकंद है
अरबिंद=कमल
दुंद=दोख
निकंद=कज़टं वाले, दूर करन वाले
मुकंद=मुकती दाता
अरथ: दंद दुखां दे दूर करन हारे गुरू गोबिंद सिंघ जी मेरे मुकती दाता हन
(अुन्हां दे) चरणां कमलां (पर) नमसकार करदा हां
स्री बाला संधुरु वाच ॥
गोरख बिचार, सिज़ध लीने हैण हंकारि सभि
आइसु अुचार तब भेजो गोपी चंद है {गोपी चंद}
आवति ही देखि करि कही है अदेस
एकुंकार को अदेश सुनि भाखी सुखकंद है
आइ ढिग बैसि अुर हरख बिशे जैसे
मारतंड१ देखि बिगसाति अरबिंद है ॥१॥
कौन धानी? कौन गानी? कौन इशनानी?
पुन निरमल कौन? मोहि तपा जी! बताईये
कौन सु जुगति जाण ते दीपक दिपति होति?
गैल२ कौन चलति सु ठाक३ नहीण पाईये?
कौन घर ऐसो, सुख पाइ जहां बैसे नित?
*एस कबिज़त दे पहिलोण ही श्री बाला संधुर वाच लिखिआ है सीते निरी पहिली तुक कबिज़त दी जो
मंगल रूप है आ के ही अज़गोण कथा अरंभ हो जाणदी है, सो एह इक सतर कवि जी वलोण मंगल नहीण
बाले वलोण मंगल समझीए? पर बाला जी ने जो पहिलोण हो चुज़के सन, गुरू गोबिंद सिंघ जी दा
दरशन नहीण कीता अुह गुरू जी दा मंगल कर नहीण सकदे, तांते एह मंगल कवी जी वलोण ही है,
केवल अुन्हां ने एथे एस मंगल ळ निखेड़के लिखंो सरफा कीता जापदा है
१सूरज ळ
२राह
३रोक