Sri Nanak Prakash
३०१
.१२. सारदा मंगल खेत बीजंा ब्रिज़ख छाइआ असथिर॥
{पावस रुज़त दा द्रिशटांत} ॥२..॥
{बिरख छाया असथिर} ॥४१॥
{राइ बुलार दी कालू जी ळ ताकीद} ॥४७॥
दोहरा: श्री चंडी खंडन दुशट भुज दंडन बरबंड
जग मंडन पद बंदना जाण को तेज प्रचंड ॥१॥
श्री=सरसती दा इक नाम है (अ) सतिकार दा इक पद
चंडी=चंडिका देखो पहिले अधाय दे छंद २ विखे दंडिका पद
खंडन दुशट=दुशटां दे खंडन वाली देखो अधाय १ छंद २ खलखंडिका पद
दा अरथ
भुज=बाहां दंडन=डंडे वाण मग़बूत देखो अधाय २ छं: १, भुजदंड पद
बरबंडिका=वर वंडं वाली (अ) बलवंत, बल वाली देखो अधा १ छंद २,
बरबंडिका-ते अधा २ छंद १ विखे बलबंड पद
मंडन=देखो अधा: १ छंद २ विखे मंडिका पद ते अधा: २ छं: १ विखे
मंडन भा पदपदबंदना=पैराण ते नमसकार
(अ) (जगत विच) कविता दी रचना कराअुण वाली
प्रचंड=बहुत असहि, झज़लिआ ना सज़कं वाला
अरथ: मग़बूत बाहां वाली, दुशटां दे नाश करन वाली, जिस दा तेज झज़लिआ नहीण
जाणदा, (ऐसी) चंडिका सरसती (जो) वराण दे देण वाली (ते) जगत ळ
संवारण वाली है (दे) चरनां (ते मेरी) नमसकार (होवे)
स्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: कहि बाला श्री अंगद गुरु जी
सुनहु कथा नाशक त्रैजुर१ की
बहुरो रितु पावस२ शुभ आई
गगन३ बीच बादर४ द्रिशटाई५ ॥२॥
भाग जगे पूरब६ जज़गासी
जिअुण तन धरति७ संत सुखरासी
चढी१ घटा काली२ जिव काली३
१तिंनां तापां दे नाश करन वाली
२बरसात, -भाद्रोण
३अकाश
४बज़दल
५दिखीं लगे
६पिछले
७सरीर धारदे हन