Sri Nanak Prakash

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सुत की महिणमा लखि न सकाया
दरब लोभ हिरदा बिरमाया१
धन आनहि२ जानहि सुखदायक
सतिपंथी३ को कहित नलायक ॥६२॥
भगत जगत की४ रहति अजुकतं५
इक धन गाहक६ इक ले मुकतं७
गयो दरब जानो निज जेतो८
मोहि निकट९ ते लेवहु तेतो ॥६३॥
राइ देति सो लेति न कालू
भयो परसपर कहिन बिसालू
न्रिपति अमातय१० बात मुख भाखी
आइसु११ राइ मंन अभिलाखी ॥६४॥
बार बार नहिण फेर१२ करीजै
बिन बिचार बच ब्रिधन१३ मनीजै
कबहुण न झिरकहु अुतपल लोचन
तव सुत संत कुबंध बिमोचन१४ ॥६५॥बहुत बार कहि राइ प्रबीने
निज कर ते कालू कर दीने
भूर बिसूरति गमनो सदना
अंतर बैसो लजति बदना१५ ॥६६॥


१भरम रिहा है
२जे धन लै आवे, तां ळ (इन्हां ळ)
३सज़चे मारग टुरन वाले ळ
४भगतां दी ते जगत दी
५ना जुड़न वाली रहत है
६(जगत) धन दा गाहक
७(भगत) मुकती दे गाहक हन
८जितना
९पासोण
१०राजे दे वग़ीर ने
११आगा
१२मोड़
१३बिना सोचे वज़डिआण दी गल मंन लैंी चाहीदी है
१४खोटे बंधनां तोण छुडाअुण वाला है
१५शरमिंदा मूंह वाला

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