Sri Nanak Prakash
५७६२८. गुर चरन मंगल वेईण प्रवेश॥
{गिआन तरोवर} ॥६॥
{सुलतानपुर विज़च रौला} ॥३७॥
दोहरा: मरदन मन की मलिन को नित दासन अनकूल
हरन अमंगल सुख करन जै जै मंगल मूल ॥१॥
मलिन=मलीनताई, मैल अनकूल=क्रिपाल
मंगल मूल=खुशीआण दा मुज़ढ इस तोण पहिले ते मगरले अधावाण दे मंगलां विच
चरणां दा ग़िकर है ते इस विच कहे विशेशं बी गुर चरनां वज़ल ही ब्रिती रज़खदे
हन
अरथ: मन दी मैल ळ दूर करन वाले ते दासां पर सदा क्रिपाल रहिं वाले,
(सारे) अमंगलां ळ हर लैंे वाले (ते सारे) सुखां दे करन वाले खुशीआण दे
मुज़ढ (पिज़छे कहे चरनां दी) सदा जै होवे जै होवे!
श्री बाला संधुरु वाच ॥
सैया: मोदी की क्रिज़त बिसाल चलै
बहु काल यही बिधि और चलाई
बाला रहै निज संग सदा
अुचरो इतिहास को जाणहि१ बनाई
आपन२ पै तकरी३ कर मैण
वथु४ तोलति देति जोण होति सवाई
कोमल बोलति बोल अमोलक
लौकिक रीति५ सभै हरिखाई ॥२॥
सोरठा: राजहिण बैस दुकान, गान बास जिव भगति मैण६कीरति जौन्ह७ समान, परम पावनी८ जगत मैण ॥३॥
सैया: भेद को जानहिण मानव९ जे१०
करि संगति कोमल बोल सुनै हैण
१जिस ने
२हज़टी ते
३तज़कड़ी
४चीग़ां
५(गुरू जी दी) लौकिक रीत अुज़ते
६भगती विच जिवेण गान वसदा है
७चांदनी
८पविज़तर
९मनुख
१०जेहड़े