Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) १४राशि दसवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
श्री वाहिगुरू जी की फते ॥
अथ दसमि राशि कथन ॥
अरथ: हुण दसवीण रास दा कथन करदे हां।
अंसू १. ।मंगल। श्री हरिराइ करतारपुरि आगवन॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>२
१. इश देव-श्री अकाल पुरख-मंगल।
दोहरा: सति चिंत अनद प्रमातमा, सभि जीवन को जीव।
सदा शांति, नभ सम रवो, सरब शकति को सीव ॥१ ॥
सति चित अनद = अरथां लई देखो रास १ अंसू १ अंक ५ दे
पद अरथ। शांति = जिस अुज़ते किसे होर दा कोई
प्रभाव ना पै सके। जिस विच कोई विकार आदि ना
अुपजे। अडोल। नभ = अकाश। सीव = हज़द, अवधी।
अरथ: सति चित आनद (सरूप जो) प्रमातमा है सो सदा शांति है (फिर अुह सारे
अकाश वत रव रिहा है (ते निरा वापक ही नहीण, पर) सारीआण शकतीआण
दी हज़द है ते सारे जीवाण ळ जीवन (दान कर रिहा है)।
भाव: जिवेण पिज़छेण रास ६ अंसू १ अंक दे मंगल विच वरणित होइआ है कि
प्रमातमां सति चित आनदसरूप है अुह किसे जोश, विकार, खोभ किसे दूसरे
दे असर हेठ आअुण तोण परे सदा अडोल है। फिर वापक है अकाश वाणू,
पर अकाश वाणू शुन नहीण, शकतीमान है, पर सुज़तीआण शकतीआण दा धारन
हार नहीण, सगोण सभ ग़िंदगी दा जीवन दाता हो के अुन्हां शकतीआण ळ वरत
रिहा है। जीवन दाता बी है जीवन दा आधार बी है। पालदा है, रज़खदा है,
इस करके सभ शकतीआण दा मालिक ते वरतनहार किहा है। भाव इह है
कि पाकी नाई पाक बी है ते फिर करता ते कादिरु बी है।
२. कवि-संकेत मिरयादा दा मंगल।
कबिज़त: चंद्रमा बदन, शुभ मज़ति की सदन सद,
बिसद रदन की दिपति दुति दामनी।
बानु दंड पांी तीन लोक मैण सुजान जाणी,
सभै मन भांी महाराणी अभिरामनी।
पुंज गुनखांी, गन बिघन पराणी गांी,
अरुं बरण पांी, सलिता प्रगामनी।
महां मोद मांी, बाणी रूप है समांी जग,
बंदना संतोख सिंघ राणी दिन जामनी ॥२॥

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