Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) १३

दूजी रितु चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
श्री वाहिगुरू जी की फतह ॥
अब दुतिय रुज़त बरनते।
अंसू १. ।मंगल। खान नौकर रज़खे॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>२
१. इश गुरू-दसो गुरू साहिबाण दा-मंगल।
कबिज़त: जप गुरू नानक मुकंद, गुरू अंगद,
अमर गुरू रामदास आनद बिलद मैण।
सतिगुरू अरजन, श्री हरिगोविंद चंद,
गुरू हरि राइ ब्रिंद बिघन निकंद मैण।
श्री हरि क्रिशन, नवम गुर पातशाह,
श्री गुविंद सिंघ जी सदीव सुखकंद मैण।
सभि के पदारबिंद मन को मलिद करि,
गान मकरंद हित बंदौण हाथ बंदिमैण ॥१॥
जप = जपदा हां, अराधना करदा हां, सिमरन करदा हां।मैण = मैण। (अ) जे मैण ळ मय समझीए तां अरथ बणू:-वाले। सरूप।
सुखकंद = सुखां दा मूल। मलिद = भौरा।
अरथ: मैण सिमरन करदा हां मुकती दाते गुरू नानक जी दा, (अते) अति आनद
(दाते) गुरू अंगद, श्री गुरू अमर देव ते गुरू रामदास जी दा, (फिर) मैण
(सिमरन करदा हां) सारे विघनां ळ कज़टं हारे (श्री) सतिगुरू अरजन (देव
जी), श्री हरि गोविंद चंद (अते) गुरू हरि राइ जी दा; (फिर) मैण
(सिमरन करदा हां) सदीवी सुखदाते श्री (गुरू) हरि क्रिशन (जी, श्री) गुरू
(तेग बहादरु जी) नौवेण पातशाह (ते) श्री (गुरू) गोविंद सिंघ जी दा; (हां,
) मैण सारे (गुरू साहिबाण दे) चरनां कमलां दा (आपणे) मन ळ भअुरा बणा
के गान (रूप) मकरंद (प्रापत करन) लई (दोवेण) हथ जोड़के (अुन्हां चरनां
अुते) नमसकार करदा हां।
२. कवि-संकेत मिरयादा दा मंगल।
दोहरा: सारद बारद भा रदी; नारद, पारद, कुंद।
बरन सारदा सारदा, पद अरविंदनि बंदि ॥२॥
सारद बारद = सरद रुज़त दा बज़दल।
भा रदी = शोभा रज़द कर दिती है, भाव मातकर दिती है।
नारद = नारद, जिस दा रंग चिज़टा मंनिआ है।
पारद = पूरा। कुंद-मरतबान दा फुज़ल जो चिज़टा हुंदा है।

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