Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) १४
राशि सज़तवीण चज़ली
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ॴ स्री वाहिगुरू जी की फते ॥
अथ सपतमि रासि कथन ॥
अंसू १. ।मंगल। सूरज मज़ल दी सगाई॥
ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>२
१. इश देव-स्री अकालपुरख-मंगल।
दोहरा: माया सो* सवल जु भयो जिति किति बापि समान।
सार असार संसार करि सचिदानद महान ॥१॥
मायासवल = माइआ नाल शकती वाला।
जिति किति = जहां कहां, जिज़थे किज़थे, सारे ही।
सार असार = सज़त असज़त, आतम जगत। सार असार दे कवी जी ने जो आप
अरथ लिखे हन ओह एह हन जगत असार कूर सभि जाना। साच आतमा सार
पछाना ।रुत ६ अंसू ३ अंक ३०॥
अरथ: इस दोहे दा अनव ऐअुण हुंदा है:-जित कित बाप समान जु सज़चिदानद
महान, सो माया सवल भयो (अर माया सवल होके) सार असार संसार करि।
अरथ ऐअुण लगेगा:-जो जिथे किथे (समान =) इको जेहा विआपक
सज़चिदानद महान है अुस ने माया (नामक निज) शकती सहित होके (सार
=) आतमा (अर असार =) पंज भौतक जगत ळ रचिआ है।
भाव: आतमा विच असती भांती प्रेयता परमातमां दी है अर जगत विच नाम
रूपता माया दी है। दुहां दे मिलं तोण संसार बणिआण दज़स रहे हन।
होर अरथ: जिथे किथे समान विआपक सज़चिदानद महान ने आपणी माया शकती
दवारा (सार असार संसार =) सज़ति असज़ति तोण विलखं(अनिरवचनीय) जगत अुतपंन कीता है। जे सार असार दे अरथ
अंम्रित ते बिख करीए तां बणदा है कि इह जगत अंम्रित अर बिख
रूप कीता है।
२. कवि-संकेत मरयादा दा मंगल।
सदा सारदा सार दा सारद चंद मनिद*।
पारद बरनी पार दा बिघन बिनाशन+ ब्रिंद ॥२॥
सारदा = सरसती।
सार दा = विज़दा, विज़गान आदि दे तज़त दी दाती।
।सार = भेत, सूझ॥
*इक प्राचीन नुसखे विच पाठ सोण है, तद अरथ बणेगा:-माया नाल जो सफल होइआ है।
*पा:-सरद चंद मानिद।
+पा:-बिसालनि = विशेश करके+सज़लन = नाश करन वाली है।