Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ११८

९. ।गुरू अंगद जी दी कथा। खडूर विच छुपणा ते प्रगट होणा॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>१०
दोहरा: एको रूप सु दसम गुर, पारब्रहम आनद।
पद अरबिंद मुकंद बर, बंदौण दै कर बंद ॥१॥
सैया: श्री गुर नानक पूरन ते
गुरता गुरु अंगद ने जबि पाई।
धान रिदै गुर मूरति को
ठहिराइ लियो जब दीन बिदाई१।
बे बस है बिछरो गुर ते
अशटांग२ करी मुख कौ रज३ लाई।
नीर बिलोचन४ भूर५ बिमोचति६
सोचति प्रेम महां अुमगाई७ ॥२॥
जीव शरीर मनो बिछरोबिरहाकुल८ ते अुर बाकुल भारे।
-बोलब९ नाहि बनै गुर अज़ग्रज-
संकट तूशनि ठानि सहारे।
आइसु मानिबो धरम धरो
तजि नांहि सकैण, नहिण बाक अुचारे।
होइ बिदा ततकाल चले
निज ग्राम खडूर के पंथ पधारे ॥३॥
आवति हैण चित मैण चितवंतति१०
-श्री गुर रूप सुभाअु क्रिपाला।
दीन पै दाल, पछानति घाल को


१(गुर नानक जी ने) जदोण करतार पुरोण विदाइगी दिज़ती।
२डंडौत।
३धूड़ी।
४नेत्राण तोण।
५बहुता।
६छुटदा है।
७बड़े अुमाह विच प्रेम ळ ही सोचदे हन (अ) गुरू जी दे सरूप ळ (सोचित =) चेते करके बड़ा प्रेम
अुमगदा है।
८विछोड़े दी आकुलता (दुख) तोण (अ) सारे (भाव वडे) विछोड़े तोण।
९बोलंा।
१०चितवदे होए।

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