Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ११७

१३. ।लोहगड़्ह युज़ध-जारी॥
१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>१४
दोहरा: मचो महांसंग्राम जबि, कर चमकति शमशेर।
श्री गुर हरि गोविंद तबि, भरे कोप सम शेर ॥१॥
सैया: तीर तजे गन भीर भजे,
नहि ओज सजे१, न लजे मन काचे।
तीखन भीखन जे खपरे
सर मोट, पके दिढ ग्रंथ हैण ताचे२।
कंकन३ पंख बिलद लगे
जिन कंचन बागर४ सुंदर राचे।
चांप नुटंक+ ते५ छोरति हैण
जिह लागि परे किम सो नर बाचे ॥२॥
तूरन तीरनि पूरति श्रों लौ
फोरि सरीरनि सूर गिराए।
जाने न जाति निखंग निकारति,
जो संचारति चांप चढाए६।
छूटति शूंकति जोर भरे
फं को बिसतारति नाग सिधाए७।
एक दै तीन को बेधति हैण
गिर जाणहि घने भट यौण अुथलाए ॥३॥
श्री हरि गोविंद बीर बहादुर
बादर जोण सर को बरखावैण।
देण ललकारे मनो गरजैण,
कर चांप धरे धनु इंद्र१ सुहावैण।


१बल न ला सके।
२पज़कीआण ते मग़बूत गंढां हन तिन्हां (बाण) दीआण।
३कंक पंछी दे।
४तीर देपिछले सिरे दी गंढ जो कमान दी रज़सी ते धरके खिज़चीदी है। ।पंजा: बागड़। फा: बागरह
= गंढ॥
+पा:-नौटंक।
५नौटंक दे धनुख तोण। इक टांक = धनुख दी शकती दी प्रीखा दे वासते इक तोल जो २५ सेर दा
हुंदा सी (हिंदी कोश)।
६चिज़ले विच जोड़दे हन (बाण) ळ, धनुख खिज़चके।
७(मानोण) नाग जाणदे हन।

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