Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) २४

२. ।चंदू ने वर ढूंडं हित लागी भेजंे॥
१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>३
दोहरा: सुनहु कथा सवधान है, श्रोता सिख समुदाइ।
वधहि बखेरा जाणहि ते मिलनि तुरक१ बनिआइ ॥१॥
सैया: राज करै सगरी छित को२जिन आइसु मेटि सकहि नहि कोअू।
दीरघ कोट चमू जिस पै,
न मवासि रहो अस भाखहि जोअू।
भूपति पूरब दज़छन को
पुन पज़छम के न्रिप सैल जि३ होअू।
आन४ को मानि कै, डानु५ को देति,
कि सेव करैण रहि हाजर सोअू ॥२॥
कबिज़त: दिज़लीपति भयो जहांगीर जिस नाम कहैण
अधिक प्रताप तुरकेशर को जानिये।
कोश मैण दरब महां देति लेति जहां कहां
अपर समाज कहां गिनिबे मैण आनिये।
चारोण दिशि मांहि त्रास जुज़ध ते निरास भए
हाथ बंदि आनि पासि जीवनि को ठानिये६।
रंक देहि राजा करि, राजा को बनावै रंक
ऐसो पातिशाहि भयो ऐशरज महानिये ॥३॥
कबिज़त: तां को है दिवान एक चंदू नाम अबिबेक७
गुरू परमेशर महातम न जानई।
माया मद मातो, मूढ कुमति अरूढ रहै,
हुकम चलावति हंकार कै महानई।
पातशाही लोक सभि मानै आन ठानै नमो,
चाहै जिम करै तिम देश जिस मानई।


१तुरक नाल मिलना।
२भाव सारा अुतरी हिंदुसतान ते अफगानिसतान आदि।
३पहाड़ीराजे।
४ईन।
५डंड, डंन।
६गुग़रान करदे हन।
७मूरख।

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