Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) १२६

बसै पठान चमूं समुदाई ॥३४॥
श्री मुख ते फुरमावन करो।
तुरकन तेज भविज़खत हरो२।
काने काछे++ ग्राम बडेरे।
तहि अुपजहिगे सिंघ घनेरे ॥३५॥
बहुत नौबतां बजैण हमारी।
केतिक दिन महि तिनहु मझारी।
इम बतरावति तिस थल खरे।
तीतर इक अवाज तबि करे ॥३६॥
सुनि क्रिपाल भाखो तिह समै।
जाण बोलो तां लधा हमै।
हय पर तबि आरोहनिहोए।
कीनि पयानो शीघ्र सु जोए ॥३७॥
छोडो तिस के बाज पिछारे।
करी न झपट न तिस को मारे।
पुन कहि करि कूकर छुटवाए।
पिखि तीतर को पीछे धाए ॥३८॥
झारन बिखै जाइ करि बरो।
बहुर निकारो अुडिबो करो।
पीछे केतिक सिंघ न साथ।
चले जाहि तूरन जगनाथ ॥३९॥
करति बेग ते जाइ अुडारी।
थकति छपहि पिखि झारन झारी३।
बहुत बिलोकहि खोजन करैण।
निकसति ही अुड करि चलि परै ॥४०॥


१इस नगर भाव कसूर विच बाई नौबतां वजदीआण हन, भाव बाई सरदार (पठां दे) रहिदे
हन। साखीआण दी पोथी विच ऐअुण लिखिआ है:-अगे डेरा वजीद पुर होइआ। सिखां कहिआ जी
पातशाह कसूर दे हेठ आए अुतरे हां। पातशाह बाई नौबतां इन्हां कीआण वजदीआण हनि कसूर ॥
गुरू जी बचन कीता, हमारे कान्हे काछे वजंगीआण नौबतां।
+पा:-थाई।
२अज़गे ळ दूर कर दिज़ता है।
++कान्हे इक शहीदगंज सिंघां दा है जो इक डेरे विच है। इह पिंड लाहौर ते कसूर जाण वाली
पज़की सड़क परहै।
३थज़क जाणदा है तां बहुत झाड़ीआण भाव संघणीआण झाड़ां वेखके छप जाणदा है।

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